महाराजगंज के सिसवां बाजार स्थित मदरसा अताउल रसूल के तीन शिक्षकों और एक लिपिक को बर्खास्त किये जाने के बाद भी राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से 3 करोड़ 8 लाख 856 रुपये की राशि का भुगतान कर सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाए जाने का मामला गहरा गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति मनोज मिश्र व न्यायमूर्ति विकास बधवार की डबल बेंच ने इस मामले में बर्खास्त कार्मिकों की ओर से दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है।
उधर, उ.प्र. मदरसा शिक्षा परिषद के रजिस्ट्रार जगमोहन सिंह ने पिछले साल पहली सितम्बर को इन बर्खास्त कार्मिकों में से एक लिपिक रौशन अली का वेतन भुगतान तत्काल प्रभाव से रोके जाने और पिछले वेतन भुगतान की रिकवरी किये जाने का आदेश भी जारी किया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की डबल बेंच से राहत न मिलने के बाद अब मदरसे के इन कार्मिकों शिक्षक मैनुद्दीन, मजहर और शहाबुल्लाह तथा लिपिक रौशन अली को भुगतान की गई करोड़ों रुपये की वेतन भत्ते की राशि की रिकवरी होने और वेतन भुगतान करवाने में संलिप्त अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अफसरों की जिम्मेदारी तय होने के आसार बढ़ गये हैं। मदरसे के प्रबंधक आशिक अली राईनी ने भ्रष्टाचार व कामकाज में लापरवाही के मामले में शिक्षक मैनुद्दीन व मजहर को 16 मई 2008 शिक्षक शहाबुल्लाह को पहली जून 2008 तथा लिपिक रौशन अली को नौ जनवरी 2006 को बर्खास्त किया गया था।
मगर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से इन कार्मिकों का वेतन व भत्ते का भुगतान जारी रहा। जिसके खिलाफ मदरसा प्रबंधक ने शासन से शिकायत की। फिर उन्होंने अदालत की शरण ली। शनिवार 7 जनवरी को इस बारे में मदरसा प्रबंधक व सचिव आशिक अली राईनी ने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की अपर मुख्य सचिव मोनिका गर्ग को एक शिकायती पत्र भेजा है।
यही नहीं यह आदेश अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के निदेशक की ओर से जारी होना था, मगर वह भी नहीं किया गया बल्कि मदरसा परिषद के रजिस्ट्रार ने खुद ही जारी कर दिया