Home PRIMARY KA MASTER NEWS Shikshamitra latest news : लखनऊ पहुंचे 1 लाख शिक्षामित्रों का विशाल प्रदर्शन: महिलाएं बोलीं- हम 2001 में टॉपर और योग्य थे, अब अयोग्य हो गए; 10 हजार में परिवार कैसे चलाएं?

Shikshamitra latest news : लखनऊ पहुंचे 1 लाख शिक्षामित्रों का विशाल प्रदर्शन: महिलाएं बोलीं- हम 2001 में टॉपर और योग्य थे, अब अयोग्य हो गए; 10 हजार में परिवार कैसे चलाएं?

by Manju Maurya

” अगर शिक्षामित्र पढ़ाना नहीं जानते तो इतने सालों से हमें नौकरी पर रखा क्यों है? हमसे पहले की तरह पूरा काम करवाया जा रहा, लेकिन वेतन 40 हजार से 10 हजार कर दिया। सबको ये दिखता है कि हम 3500 सैलरी से 10 हजार पर आ गए, कोई ये नहीं कहता कि 40 हजार से 10 हजार पर आए हैं।” ये कहना है लखनऊ के रमाबाई अम्बेडकर मैदान में आंदोलन कर रहे शिक्षामित्रों का। आज 1 लाख से ज्यादा शिक्षामित्र अपनी मांगों को लेकर यहां पहुंचे हैं।

शिक्षामित्रों ने इस प्रदर्शन को महासम्मेलन नाम दिया है। प्रदेश के हर जिलों से न सिर्फ पुरुष, बल्कि महिला शिक्षामित्र बस-ट्रेन और अपनी गाड़ियों से पहुंचे हैं। उनकी मांग है कि समान काम का समान वेतन दिया जाए। मतलब सहायक अध्यापकों की तरह उन्हें भी 40 हजार रुपए सैलरी दी जाए।

दैनिक भास्कर की टीम इस पूरे महासम्मेलन को कवर करने रमाबाई मैदान पहुंची। शिक्षामित्रों से बात की। उनकी मांगों को जाना। आइए उनकी बातों को बताते हैं साथ ही उन संभावनाओं पर भी बात करते हैं कि शिक्षा मित्रों के लिए क्या कुछ बेहतर हो सकता है।

जब सेलेक्शन हुआ तो हम टॉपर थे आज संघर्ष कर रहे ‘
फिरोजाबाद से आए शिक्षामित्र अजय यादव कहते हैं, “हमारी मांग है कि हमें स्थायी किया जाए। आज 70% शिक्षामित्र 50 वर्ष के ऊपर हैं। 10 हजार की सैलरी में हम न अपने बच्चों को पढ़ा पा रहे और न ही अपने बूढ़े मां-बाप का इलाज करवा पा रहे। जिस वक्त हमारा चयन हुआ था हम गांव के टॉपर हुआ करते थे। आज अपनी ही नौकरी के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा।” इतना कहने के बाद अजय अपनी व्यथा को गाने के जरिए बताने लगते हैं।

4 साल 6 हजार साथियों ने आत्महत्या कर ली अजय बताते हैं, “25 जुलाई 2017 तक हमें 40 हजार रुपए महीने सैलरी मिली। फिर अचानक हम लोगों का समायोजन अवैध बताते हुए रद्द कर दिया गया। इसके बाद हमारे बहुत सारे साथियों ने आत्महत्या कर ली। धीरे-धीरे यह संख्या 6 हजार से ज्यादा पहुंच गई है। ” आत्महत्या करने वाले वो शिक्षामित्र हैं, जिन्होंने बैंक से लोन लिया था लेकिन जब सैलरी 40 हजार से घटकर सीधे 10 हजार हो गई तो वह लोन चुका पाने की स्थिति में नहीं रहे। यही वजह है कि उन्होंने आत्महत्या कर लिया।

समान काम का समान वेतन ही तो मांग रहे हैं महासम्मेलन में शामिल होने आई सुषमा त्रिपाठी पहली लाइन में कहती हैं, “हमारी मांग है कि हमें नियमित किया जाए। जो काम सरकारी स्कूल में हमारे साथ टीचर रहे हैं वही काम हम भी कर रहे हैं लेकिन उन्हें उस काम के लिए 40 हजार मिल रहा और हमें मात्र 10 हजार रुपए मिल रहा। एक समय था जब हमें 40 मिल रहा था तब हम योग्य थे, फिर 10 हजार हो गया तो हम अयोग्य हो गए। बताइए ये कोई बात है? “

मेरे बच्चे मजदूरी करने को मजबूर हैं

फिरोजाबाद से आए शिशुपाल सिंह कहते हैं, “पता नहीं सरकार को हम लोगों से क्या दिक्कत है, इतना कम मानदेय तो प्रदेश में किसी और का नहीं है। हमारे बच्चे पढ़ने के बजाय मजदूरी करने को मजबूर हैं।” इतना कहने के बाद शिशुपाल रोने लगते हैं। खुद को संभालते हुए कहते हैं कि हमारे पास आत्महत्या करने के अलावा कोई और दूसरा चारा नहीं है।

‘हमारे मन की वेदना को समझ लीजिए ‘

अम्बेडकरनगर जिले से आई गीता देवी ने अपनी व्यथा और मांग को गाने के जरिए व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “2001 में हम गांव के टॉपर थे। सरकार ने हमें योग्य माना लेकिन 2017 में हमें अयोग्य कर दिया गया। उस वक्त हमारी महिला साथियों ने सिर मुंड़वा दिया, साथियों ने जहर खा लिया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। आज 10 हजार में क्या हो सकता है… हमारे बच्चे कैसे आगे बढ़ेंगे। हमारे मन की वेदना को समझ लीजिए न।”

कुशीनगर के शिक्षामित्र सत्येंद्र तिवारी कहते हैं, “हम बीटीसी ट्रेनिंग कर चुके हैं, टेट पास हैं। सीटेट पास हैं। यहां मौजूद लगभग शिक्षामित्र यही योग्यता रखता है लेकिन उन्हें नियमित नहीं किया जा रहा। उन्होंने अपने स्कूल में नियुक्त अध्यापकों की लिस्ट दिखाते हुए कहा, देखिए सभी की योग्यता सेम है। लेकिन उन्हें उसी काम के लिए 40 हजार रुपए मिलते हैं और हमें उसी काम के लिए 10 हजार रुपए मिलते हैं। “

यहां तक आपने शिक्षामित्रों की बातें सुनी। तमाम लोगों से हम ऑफ कैमरा बात की। उन्होंने एक बात का जिक्र किया। कहा- बनारस में सीएम और पीएम ने शिक्षामित्रों की रक्षा की जिम्मेदारी ली थी। अब समय आ गया कि वह अपना वादा पूरा करें।

सुसाइड लेटर लिखा और मौत को गले लगा लिया
5 महीने पहले बिजनौर में कौशल नाम के शिक्षामित्र ने ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान दे दी। उन्होंने एक सुसाइड नोट लिखा। जिसमें आर्थिक तंगी का जिक्र करते हुए लिखा- “मैं आज योगी-मोदी की दोहरी नीति से तंग आकर आत्महत्या कर रहा हूं। क्योंकि कम मानदेय में परिवार का गुजारा नहीं हो पा रहा।

आखिर में समझते हैं कि शिक्षामित्रों का विवाद क्या है। 26 मई 1999 को संविदा के आधार पर शिक्षा मित्रों की नियुक्ति की गई थी। लगातार नौकरी करने के बाद शिक्षा मित्रों ने स्थायी करने की मांग शुरू कर दी थी। जून 2013 में 1,72,000 शिक्षा मित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित करने का निर्णय अखिलेश सरकार ने लिया । सरकार के इस फैसले को पहले से कार्यरत और टेट पास शिक्षकों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।इनका वेतनमान भी सहायक अध्यापक की तरह 30 हजार 45 हजार तक हो गया था। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाएं खारिज कर दी थी। इसके बाद 2017 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए उन सभी सहायक अध्यापकों को दोबारा शिक्षा मित्र बना दिया । इनका वेतनमान भी 10 हजार रुपए हो गया। तब से लेकर आज तक अलग-अलग मोर्चों पर लड़ाई चल रही है।

सरकार इस मामले में क्या कर सकती है सरकार शिक्षामित्रों के मामले में जो एक काम कर सकती है। वह है उनके मानदेय पर फैसला। अभी मिल रहे 10 हजार मानदेय को वह 15 या फिर 20 हजार करके शिक्षामित्रों की आर्थिक समस्या को कम कर सकती है। चूंकि शिक्षामित्रों का समायोजन सुप्रीम कोर्ट ने अवैध बताते हुए रद्द किया था इसलिए सरकार इनकी दोबारा स्थायी नियुक्ति से बच रही है।

इको गार्डेन में मदरसा अध्यापकों ने किया प्रदर्शन

एक तरफ जहां शिक्षा मित्रों का प्रदर्शन रमाबाई अम्बेडकर मैदान में चल रहा था दूसरी तरफ ईको गार्डेन में मदरसा शिक्षकों का भी आंदोलन चल रहा था। इन शिक्षकों को पिछले 72 महीने से सैलरी नहीं मिली। एक-एक व्यक्ति का बकाया करीब 9 लाख रुपए पहुंच गया है। इनकी मांग है कि केंद्र सरकार इनके मुद्दे को ध्यान दे और सैलरी नियमित करे।

हाईकोर्ट ने जरूरी योग्यता न होने के आधार पर शिक्षा मित्रों का समायोजन रद्द कर दिया। इसके खिलाफ शिक्षा मित्र और राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट आए थे। कोर्ट में मामला लंबित रहने के दौरान 1,72,000 में से करीब 1,38,000 शिक्षा मित्र सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित कर दिए गए।

इनका वेतनमान भी सहायक अध्यापक की तरह 30 हजार 45 हजार तक हो गया था। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाएं खारिज कर दी थी। इसके बाद 2017 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए उन सभी सहायक अध्यापकों

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