फतेहपुर/खागा, आरटीई एक्ट के मुताबिक प्राथमिक शिक्षकों को चुनाव, जनगणना व आपदा कार्यों के अतिरिक्त अन्य गैर शैक्षणिक कार्य नहीं लिए जा सकते हैं लेकिन धरातल पर कानून का पालन होता नहीं दिख रहा है। बच्चों को शिक्षा देने की बजाए परिषदीय स्कूलों के शिक्षक इन दिनों अपने स्मार्टफोन से बाबुओं का काम करने में जुटे हैं। इन हालात में बच्चों की शिक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। अभिभावक भी शिक्षकों के ऐसे हालात की जानकारी पर अवाक हैं।
बेसिक शिक्षा विभाग जब से अपने कामों को आनलाइन मोड में करने लगा है तब से अधिकांश बेसिक शिक्षक मोबाइल फोन पर व्यस्त मिलते हैं। डीबीटी, आधार सत्यापन, प्रेरणा पोर्टल, साक्षरता परीक्षा की फीडिंग व यू डायस में बच्चों का विवरण भरने से लेकर यू ट्यूब सेशन ज्वाइन करने जैसे काम शिक्षकों द्वारा किए जा रहे हैं। ऐसे में कैसे बच्चों को पढ़ाएंगे आसनी से समझा जा सकता है।
20 मार्च से वार्षिक गृह परीक्षाओं का आयोजन होना है लेकिन शिक्षकों के पास बच्चों को पढ़ाने के समय नहीं है। शिक्षक 19 मार्च को होने वाली साक्षरता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। एनआईएलपी ऐप पर निरक्षरों की फीडिंग, रजिस्ट्रेशन प्रपत्र भराने के साथ परीक्षा की तैयारी की जा रही है। 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा संभालने वाले शिक्षक अब 15 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की साक्षरता का कामकाज भी देख रहे हैं। यूडायस प्लस में बच्चों का आनलाइन विवरण भी काफी समय जाया कर रहा है।
बुुद्धिजीवी बोले, शिक्षकों पर लदे काम से कैसी शिक्षा
पूरे मामले पर बुुद्धिजीवी कहते हैं कि डीबीटी, आधार सत्यापन, प्रेरणा पोर्टल, साक्षरता परीक्षा की फीडिंग व यू डायस में बच्चों का विवरण भरने जैसे कायोको शैक्षणिक कार्य कैसे माना जा सकता है। इन कार्यों से बच्चों को कहां शिक्षा प्राप्त हो रही है। साफ तौर पर कहा कि पढ़ाई के अलावा शिक्षकों से कराए जा रहे कार्यों को क्लर्कों से कराया जाना चाहिए लेकिन अधिकांश बेसिक स्कूलों में क्लर्क छोड़िए, सफाईकर्मी व चपरासी भी नहीं हैं। ऐसे में केवल और केवल बच्चों की पढ़ाई ही प्रभावित हो रही है।