सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में दोहराया है कि चयन के बाद नियुक्ति से रह गए प्रतीक्षा सूची में रखे गए उम्मीदवार नियुक्ति का दावा नहीं कर सकते। न ही अदालत यह आदेश दे सकती है कि प्रतीक्षा सूची वाले को नियुक्त किया जाए। पीठ ने यह आदेश कर्नाटक में शिक्षकों की भर्ती मामले में दिया है।
। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में दोहराया है कि चयन के बाद नियुक्ति से रह गए प्रतीक्षा सूची में रखे गए उम्मीदवार नियुक्ति का दावा नहीं कर सकते। न ही अदालत यह आदेश दे सकती है कि प्रतीक्षा सूची वाले को नियुक्त किया जाए।
न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा की पीठ ने यह आदेश कर्नाटक में सहायक शिक्षकों की भर्ती के मामले में दिया है। इस मामले में 2016 में शिक्षकों की भर्ती की गई थी। अंतिम सूची में पांच उम्मीदवारों का चयन किया गया और शेष उम्मीदवारों को प्रतीक्षा सूची में रख दिया गया। कुछ समय बाद एक शिक्षक ने पद से त्यागपत्र दे दिया। उनके खाली हुए स्थान पर प्रतीक्षा सूची में रखे गए व्यक्ति ने दावा किया। जब सरकार ने उनका आदेवन नहीं सुना और कहा कि वह प्रतीक्षा सूची की अवधि के छह माह में आवेदन नहीं आया है इसलिए उन्हें नियुक्ति नहीं दी जा सकती। इस पर उम्मीदवार ने कर्नाटक हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह नियम के अनुसार प्रतीक्षा सूची में रखे गए उम्मीदवार को नियुक्त करे। हाईकोर्ट ने कहा कि प्रतीक्षा सूची की अवधि छह माह होती है। यह तभी समाप्त होती है जब सरकार नई नियुक्तियों के लिए विज्ञापन जारी करे। सरकार ने नई नियुक्तियों के लिए विज्ञापन जारी नहीं किया है, वहीं सरकार ने प्रतीक्षा सूची वालों को सूचित भी नहीं किया था कि सूची की अवधि समाप्त होने वाली है। इसलिए उम्मीदवार के देरी से आने की कोई समस्या नहीं है क्योंकि यह उसकी गलती नहीं थी।
कर्नाटक सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि प्रतीक्षा सूची सरकार पर बाध्यकारी नहीं होती कि वह उम्मीदवारों को नियुक्ति दे। प्रतीक्षा सूची का प्रकाशित होना उम्मीदवारों के हितों का सृजन नहीं करता। प्रतीक्षा सूची में से पदों को भरने के लिए विशेष नियम हो तभी यह लिस्ट प्रभावी होगी। लेकिन राज्य में इस तरह का कोई नियम नहीं है। इसलिए हाईकोर्ट का सरकार को भर्ती के लिए निर्देश देना अनुचित है।