लखनऊ। इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सेवा संबंधी एक अहम फैसले में कहा कि किसी को सेवा में काफी समय तक रखने के बाद उसके चयन में कुछ कमियों की वजह से चयन को निरस्त नहीं किया जा सकता या सेवाएं समाप्त नहीं की जा सकती हैं। इस विधिक व्यवस्था के साथ कोर्ट ने डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के पांच शिक्षकों की सेवा बहाली का आदेश विश्वविद्यालय प्रशासन को दिया है। इनके चयन को रद्द किए जाने के तहत इनकी सेवा समाप्त कर दी गई थी। शिक्षकों ने इसके खिलाफ याचिकाएं दायर की थीं।
न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकल पीठ ने यह फैसला व आदेश डॉ. राजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव समेत पांच शिक्षकों की तरफ से अलग-अलग दायर याचिकाओं को मंजूर करके दिया। इनमें विश्वविद्यालय प्रशासन के 6 जुलाई 2022 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें जांच के बाद इनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं। याचियों का कहना था कि वे काफी समय से कार्यरत थे। ऐसे में सुनवाई का मौका दिए बगैर उनकी सेवा समाप्त करना कानून की मंशा के खिलाफ था।उधर, पक्षकारों की ओर से याचिकाओं का विरोध किया गया
कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसले में सुप्रीम कोर्ट की एक नजीर के हवाले से कहा कि किसी को सेवा में काफी समय तक रखने के बाद उसके चयन में कुछ कमियों की वजह से चयन को निरस्त नहीं किया जा सकता या सेवाएं समाप्त नहीं की जा सकती हैं।
कोर्ट ने कहा कि इसके मद्देनजर याचियों का केस सुप्रीम कोर्ट की नजीर से आच्छादित है। ऐसे में याचिकाएं मंजूर की जाती हैं। इस विधिक व्यवस्था के साथ कोर्ट ने याचियों को सेवा से हटाने के आदेश को अवैधानिक व मनमाना ठहराते हुए रद्द कर दिया। साथ ही विश्वविद्यालय प्रशासन को आदेश दिया कि याची शिक्षकों की छह सात साल की सेवा को ध्यान में रखकर उनको सेवा से हटाने की तिथि से पारिश्रमिक के भुगतान के साथ तुरंत सेवा में बहाल करें