हमारी स्कूली शिक्षा के सामने तमाम तरह की चुनौतियां हैं, लेकिन तस्वीर उतनी भी खराब नहीं है। देश के हर हिस्से में आपको अच्छे शिक्षक और स्कूल मिल जाएंगे। फिर भी, कुछ ऐसे काम किए जाने चाहिए, जो काफी महत्वपूर्ण हैं। पहला, राज्यों को शैक्षणिक कामों के लिए स्कूली शिक्षा व्यवस्था से जुड़े संस्थानों को मजबूत करना होगा। शैक्षणिक काम का अर्थ है, बेहतर पाठ्यक्रम, पाठ्यक्रमों में सुधार, पाठ्यपुस्तकों की गुणवत्ता, परीक्षा व मूल्यांकन में सुधार, स्कूल का नेतृत्व करने वालों का बेहतर प्रशिक्षण आदि। वहीं, संस्थानों में राज्य स्तर पर राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी), जिला स्तर पर जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डीआईईटी), और ब्लॉक व क्लस्टर-स्तरीय संसाधन केंद्र (बीआरसी और सीआरसी) भी शामिल हैं।
बेशक सभी राज्यों में राज्य व जिला स्तर के संस्थान हैं, लेकिन सभी जगह बीआरसी और सीआरसी नहीं हैं। ज्यादातर जिलों के आकार को देखते हुए डीआईईटी जैसे एकल संस्थान के लिए क्षेत्र के तमाम स्कूलों तक पहुंच बनाना आसान नहीं होता। इसी कारण बीआरसी और सीआरसी महत्वपूर्ण बन जाते हैं। हालांकि, कुछ राज्यों में सीआरसी स्तर पर तंत्र बनाया गया है, जैसे, पंचायत के सभी स्कूलों का समूह बनाना, और ये तरीके प्रभावी भी हो सकते हैं। मगर दिक्कत यह है कि बहुत सारे एससीईआरटी और डीआईईटी सुस्त पड़े हुए हैं। शिक्षा की बेहतरी के लिए इनमें नई ऊर्जा भरनी होगी। हालांकि, इनको जगाना आसान नहीं है, पर यह किया जा सकता है, और कुछ राज्यों ने ऐसा किया भी है। इसके लिए इन संस्थानों को शिक्षा निदेशालय के सहायक अंग के रूप में रखने की जगह स्वायत्त बनाना होगा। इस तरह के काम में रुचि रखने वाले लोगों की नियुक्ति और उन्हें पर्याप्त स्टाफ देना भी जरूरी है। सीआरसी व बीआरसी को भी हम इसी तरह मजबूत बना सकते हैं।
दूसरा काम, जमीनी स्तर पर प्रशासनिक ढांचा सरल और स्पष्ट बनाने का होना चाहिए। जिला स्तर पर अक्सर आदेशों की शृंखलाएं काम करती रहती हैं। चूंकि प्रशासनिक ढांचा का जाल काफी उलझा होता है, इसलिए स्वामित्व व जवाबदेही की कमी नजर आती है। तीसरा काम है, शिक्षकों को बेहतर प्रशिक्षण व सहायता देना। ‘टीचर ट्रेनिंग’ को बहुत अहमियत नहीं दी जाती, जबकि शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाने में यह काफी अहम है। शिक्षा में सुधार के लिए शिक्षकों का बेहतर पढ़ाना जरूरी है और इसके लिए स्कूल स्तर पर उनका प्रशिक्षण ही सही रास्ता है। चौथा काम यह होना चाहिए कि सभी कक्षाओं के लिए उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तकें तैयार की जाए। हमारा तंत्र पाठ्यपुस्तकों पर हद से अधिक निर्भर है, और हमें यह तस्वीर बदलनी है। मगर जब तक यह स्थिति बनी हुई है, तब तक उच्च गुणवत्ता वाली पुस्तकें न सिर्फ शिक्षकों की दक्षता में, बल्कि छात्रों की रुचि व समझ में भी बड़ा अंतर ला सकती हैं।
पांचवां काम, स्कूल नेतृत्व के साथ-साथ ब्लॉक व जिला स्तर के नेतृत्व की पेशागत समझ को बेहतर बनाने का प्रयास होना चाहिए। इनमें से कई लोग परिवर्तन और सुधार लाने में काफी कारगर साबित हो सकते हैं। छठा काम, सभी बोर्ड परीक्षाओं में सुधार किया जाना चाहिए। हमें यह जांचने की प्रक्रिया बंद कर देनी चाहिए कि बच्चे तथ्यों को रटकर कैसे लिख पाते हैं। इसके बजाय, परीक्षाओं में बुनियादी समझ, उसका व्यावहारिक इस्तेमाल, आलोचनात्मक सोच व अन्य मौलिक क्षमताओं का आकलन किया जाना चाहिए। बच्चों पर दबाव कम करने के लिए बोर्ड परीक्षाओं का दबाव कम करना होगा। इसके लिए एक ही शैक्षणिक वर्ष में कई दौर की परीक्षाएं भी आयोजित की जा सकती हैं।
अच्छी बात यह है कि इन तमाम उपायों या कामों को करने के लिए हमें बड़े बजट की दरकार नहीं है। जरूरत बस इस बात की है कि राज्य के राजनीतिक व प्रशासनिक नेतृत्वों के बीच प्राथमिकताओं को लेकर समन्वय बने। इसके बाद इनके क्रियान्वयन पर पूरा ध्यान लगाना होगा। देश का हर सूबा यह कर सकता है, और उसको करना भी चाहिए। वह चाहे, तो उनसे सबक ले सकता है, जो पहले ऐसा कर चुके हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)