नई दिल्ली, । मुजफ्फरनगर जिला एक स्कूल में होमवर्क पूरा नहीं करने पर सहपाठी छात्रों से एक समुदाय विशेष के छात्र को पिटवाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार से पीड़ित बच्चे को वहां के एक निजी स्कूल में दाखिला कराने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने सरकार को यह आदेश तब दिया, जब राज्य के शिक्षा विभाग ने कहा कि वह पीड़ित बच्चे को सीबीएसई से संबद्ध निजी स्कूल में दाखिला कराने पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन कर रहा है।
जस्टिस अभय एस. ओका और पंकज मिथल की पीठ के समक्ष राज्य के शिक्षा विभाग की ओर से पेश अधिवक्ता ने यह जानकारी दी। विभाग की ओर से अधिवक्ता ने पीठ से कहा कि उसके अधिकार क्षेत्र में केवल यूपी बोर्ड से संबद्ध स्कूल हैं। इस पर जस्टिस ओका ने कहा कि ह्यआपको बच्चे के दाखिला दिलाने के लिए समिति क्यों गठित की जा रही है? इसमें समिति क्या करेगी? बस अपने वरिष्ठ अधिकारी से पूछें और वे स्कूल के प्रिंसिपल से बात करेंगे जो दाखिला देने पर विचार करेंगे।ह्ण पीठ ने कहा कि मामले के तथ्यों को देखते हुए मुझे नहीं लगता कि कोई भी स्कूल बच्चे को दाखिला देने से इनकार करेगा। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को शुक्रवार तक बच्चे के दाखिला के आदेश का पालन करने के बारे में रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
कठिनाई का सामना करना पड़ रहा शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता तुषार गांधी की ओर से अधिवक्ता शादान फरासत ने कहा कि लड़के के पिता चाहते थे कि उसे एक निजी सीबीएसई स्कूल में दाखिला दिलाया जाए, लेकिन उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने पीठ को बताया कि वे बच्चे और स्कूल के अन्य छात्रों को परामर्श देने के लिए किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ में बाल मनोवैज्ञानिकों की तलाश कर रहे हैं। इस पर पीठ ने कहा कि वह शुक्रवार को मामले की विस्तार से सुनवाई करेगी और सरकार को सुझाव दिया कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (एनआईएमएचएएनएस) के बाल मनोवैज्ञानिक इस मामले को संभालने के लिए बेहतर साबित होंगे। पिछली सुनवाई, 30 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि सहपाठी से एक छात्र को पिटवाने की आरोपी शिक्षिका के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में भारतीय दंड संहिता की धारा 295ए को भी जोड़ा जा रहा है।
धारा 295ए के अनुसार किसी भी समुदाय के धर्म या धार्मिक भावनाओं को अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से किया गया कार्य को अपराध माना गया है और इसमें तीन साल कैद की सजा का प्रावधान है। पीठ को बताया गया था कि शिक्षिका के खिलाफ आईपीसी की धारा 295ए लगाई जा रही है। पीठ को बताया गया था कि आरोपी शिक्षिका के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए (विभिन्न समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने से संबंधित है) के स्थान पर, आईपीसी की धारा 295ए के तहत आरोप लगाया जाएगा। शीर्ष अदालत को बताया गया कि आईपीसी की धारा 295ए के तहत आरोपी पर मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार से मंजूरी आने का इंतजार हो रहा है। इसके बाद शीर्ष अदालत ने इस बारे में सरकार को त्वरित निर्णय लेने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि सरकार धारा 295ए लगाने के लिए मंजूरी देने पर तुरंत निर्णय लें। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि वह पीड़ित छात्र और उसके सहपाठियों की काउंसलिंग के लिए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज या नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो-साइंसेज जैसे संस्थानों से पेशेवर विशेषज्ञों साथ ही को शामिल करने के बारे में विचार कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि हम उत्तर प्रदेश सरकार को यह बताना चाह रहे हैं कि पीड़ित और अन्य छात्रों की काउंसलिंग के लिए एक पेशेवर एजेंसी नियुक्त करने पर विचार कर रहे हैं और सूची अगले सोमवार को मुहैया करा दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिमा में इस घटना की त्वरित व समुचित जांच की मांग की गई है।