प्रयागराज, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि बेसिक शिक्षा परिषद की स्थानांतरण नीति के तहत स्वीकृत पद के सापेक्ष अधिक संख्या वाले अध्यापकों के जिलों में अंतर्जनपदीय स्थानांतरण नहीं करने का निर्णय सही है। कोर्ट ने कहा कि यह निर्णय न तो मनमाना है और न ही विधि विरुद्ध है। इसलिए सरकार की नीति में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है। इसी के साथ कोर्ट ने अंतर्जनपदीय स्थानांतरण नीति के क्लाज चार में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए सभी याचिकाएं खारिज कर दी हैं।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने रचना व दर्जनों अन्य अध्यापकों की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिया है। याचिकाओं में दो जून 2023 को घोषित अंतर्जनपदीय स्थानांतरण नीति के क्लाज चार को चुनौती दी गई थी। इस क्लाज के अनुसार जनपद में स्वीकृत पद के सापेक्ष 30 अप्रैल 2023 तक कार्यरत अध्यापकों की संख्या के 10 प्रतिशत की अधिकतम सीमा तक अंतर्जनपदीय स्थानांतरण किया जाएगा। किसी जनपद से स्थानांतरित होकर आने वाले व स्थानांतरित होकर जाने वाले शिक्षकों की अधिकतम सीमा 10 प्रतिशत होगी। इसके तहत सरकार ने कुछ ऐसे जिलों, जहां स्वीकृत संख्या से अधिक संख्या में अध्यापक कार्यरत थे, वहां के संबंध में निर्णय लिया कि उन जिलों में कार्यरत अध्यापक दूसरे जिलों को स्थानांतरित
तो किए जा सकेंगे लेकिन दूसरे जिलों से उन जिलों में कोई अध्यापक स्थानांतरित करके नहीं भेजा जाएगा। ऐसे जिलों को शून्य घोषित किया गया। याचियों का कहना था कि 10 प्रतिशत पदों की गणना व निर्धारण और उसकी व्याख्या तथा जिलों को शून्य घोषित करना न सिर्फ नीति के विपरीत है बल्कि क्लाज चार की गलत व्याख्या भी है। कहा गया कि सरकार ने स्वीकृत पद के सापेक्ष अधिक संख्या वाले जिलों को भी 10 प्रतिशत की सीमा में शामिल कर लिया है।