जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास कार्यालय में कार्यरत माली ने दाखिल की थी याचिका
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अंशकालिक कर्मचारी भी पूर्णकालिक कर्मचारी के समान वेतन पाने का हकदार है। बशर्ते, उसके द्वारा किए जा रहे कार्य की प्रकृति नियमित कर्मचारी के समान हो। यह अहम फैसला न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की अदालत ने जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास अधिकारी, प्रयागराज में कार्यरत माली भारत गिरि की याचिका स्वीकार करते हुए सुनाया। याची ने सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास निदेशालय द्वारा पूर्णकालिक माली के समान वेतन की मांग को खारिज करने वाले आदेश को चुनौती दी थी। अधिवक्ता लवलेश तिवारी ने दलील दी कि याची जिला सैनिक
कल्याण एवं पुनर्वास अधिकारी के कार्यालय में एकमात्र माली है, जो पूर्णकालिक माली की भांति बाग बगीचे की देखरेख करता है। जबकि, उसे नियमित कर्मचारी की तरह न्यूनतम वेतन प्रदान नहीं किया जा रहा है। याची ने समान कार्य के लिए समान वेतन की मांग को लेकर प्रत्यावेदन दिया था, जिसे उपनिदेशक ने खारिज कर दिया था।
याची के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जगजीत सिंह और सभाशंकर के मामले में दिए गए फैसलों का हवाला देते हुए विभाग के निर्णय को
असांविधानिक बताया। राज्य सरकार के स्थायी अधिवक्ता का कहना था कि याची की नियुक्ति नहीं की गई है बल्कि अंशकालिक तौर पर विभाग द्वारा आवश्यकतानुसार काम लिया जाता है।
कोर्ट याचिका स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित विधि व्यवस्थाओं के आलोक में याची को पूर्णकालिक कर्मचारी की भांति न्यूनतम वेतन का हकदार माना। न्यूनतम वेतन देने से इन्कार करने वाले आदेश को निरस्त करते हुए सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास लखनऊ के उपनिदेशक को इस मामले में समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत के अनुसार छह हफ्ते में नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया है।