प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सामान्य बातचीत के दौरान किसी को पागल कहना अपराध नहीं है। जाने अंजाने की गई ऐसी सहज टिप्पणी को तब तक अपराध नहीं माना जा सकता जब तक परिस्थितियों से यह स्पष्ट न हो कि ऐसा वक्तव्य किसी को शांतिभंग के लिए उकसाने के मकसद से दिया गया था।
यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की अदालत ने एनजीओ संचालिका याची जूडिथ मारिया मोनिका किलर उर्फ संगीता जेके की ओर से निचली अदालत द्वारा जारी तलबी आदेश को चुनौती | देने वाली याचिका को स्वीकार
करते हुए सुनाया।
मामला वाराणसी जिले का है। शिकायत कर्ता दशरथ कुमार दीक्षित एक अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। अधिवक्ता ने दिव्यांगजनों के कल्याण के लिए मिलने वाली सरकारी और विदेशी सहायता राशि का दुरुपयोग करने का आरोप सामाजिक संस्था किरण की संचालिका संगीता जेके पर लगाते हुए डीएम से जांच की मांग की थी।
डीएम ने जिला दिव्यांगजन सशक्तिकरण अधिकारी को मामले की जांच सौंपी थी। जांच के दौरान
हुई पूछताछ में याची संगीता जेके ने शिकायतकर्ता अधिवक्ता के संबंध में कहा “दिस पर्सन इस मैड” (यह व्यक्ति पागल है)। शिकायतकर्ता दशरथ ने संगीता जेके के इस टिप्पणी पर आपत्ति जताई और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में संगीता जेके के खिलाफ मानहानि का दावा किया।
मजिस्ट्रेट की अदालत ने समन (तलबी आदेश) जारी कर दिया। समन के खिलाफ जिला जज की अदालत से भी राहत ने मिलने पर याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
कोर्ट ने याची की ओर से दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए दोनों निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया।
जांच के दौरान एनजीओ संचालिका ने अधिवक्ता को कहा था- ‘दिस पर्सन इज मैड’