नई दिल्ली, । कोविड महामारी के बाद से स्कूली बच्चों में गैजेट (मोबाइल, टैबलेट) की उपयोगिता बढ़ने से मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) की समस्या तेजी से बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में 20 फीसदी और ग्रामीण इलाकों में सात से आठ फीसदी बच्चों में चश्मे की जरूरत बढ़ी है। यह तथ्य एम्स में दृष्टि दोष को लेकर आयोजित बैठक के दौरान डॉक्टरों ने प्रस्तुत किए।
नेतृत्व विकास कार्यक्रम को लेकर एम्स के डॉ. आरपी सेंटर और एक निजी संगठन की ओर से मंगलवार को एक बैठक हुई। इसमें प्रो. डॉ. रोहित सक्सेना ने बताया कि बच्चों में दृष्टिदोष और मायोपिया की मौजूदगी बढ़ती जा रही है।
पूर्वी एशिया के सिंगापुर सहित दूसरे देशों में 80-90 फीसदी बच्चों में दृष्टि दोष है। इन देशों में यह आम बात हो गई है, लेकिन भारत में भी यह अब तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2001 में हुए एक सर्वेक्षण में मायोपिया की दर सात फीसदी थी। फिर कुछ साल बाद 12-13 फीसदी हो गई। वहीं, डॉ. प्रोमिला ने बताया कि पहले सामान्य तौर पर 12-13 वर्ष से लेकर 18 साल तक दृष्टि दोष की समस्या थी। कोविड के बाद से अब यह जल्दी हो रहा है। पिछले पांच-छह सालों में यह समस्या बढ़ी है। इस बैठक में एम्स के डॉ. आरपी सेंटर के प्रोफेसर डॉ. प्रवीण वशिष्ठ भी शामिल रहे।
दृष्टि दोष को ऐसे पहचान सकते हैं
अगर आपका बच्चा ब्लैक बोर्ड को नजदीक से जाकर पढ़ता है। किताबों को आंखों के नजदीक रखता है। पलके ज्यादा झपकता है। आंख से पानी बहता है तो ऐसे में बच्चे की जांच जरूर करवा लें। यह दृष्टि दोष के लक्षण हो सकते हैं। इससे बचाव के लिए अभिभावक बच्चों को फोन न दें। विटामिन ए अधिक लें। दो घंटे बाहरी गतिवधियों में बच्चे समय जरूर बिताएं।
टीवी भी चिंता की वजह
डॉ. रोहित सक्सेना ने बताया कि कोविड से पहले बच्चों के टीवी देखने की बात सामने आती थी। मगर, अब मोबाइल देखने की बात लेकर अभिभावक आते हैं। अगली पीढ़ी के लिए यह चिंता वाली है। बच्चों का बाहर जाना बंद हो गया है। मायोपिया इंसान में सबसे जल्दी होने वाले बीमारी है।
इन बातों का ध्यान रखना जरूरी
● बच्चों की मोबाइल और टैबलेट से दूरी बनाएं
● स्मार्ट स्क्रीन से चार से छह फीट की दूरी रखें
● सीमित समय में फोन का इस्तेमाल करें
● हर आधे घंटे के बाद पांच मिनट का अंतराल लें
● बच्चे रोजाना दो घंटे बाहर रोशनी में जरूर बिताएं
60 चालक प्रभावित
विजन स्प्रिंग के अध्यक्ष जॉर्डन ने बताया कि 60 फीसदी व्यावयायिक वाहन चालक इससे प्रभावित हैं। 55 करोड़ लोगों को चश्मे की जरूरत है। अगर इन तक चश्मा पहुंचा जाए तो तीन से छह फीसदी तक जीडीपी बढ़ सकता है
लोगों को जागरूक करना होगा
डॉ. प्रोमिला गुप्ता ने बताया कि 25 फीसदी बच्चों को चश्मा पहनने की जरूरत है, लेकिन वे चश्मा पहनने को लेकर संकोच करते हैं। ऐसे में अभिभावकों की भागीदारी बेहद जरूरी है। मगर, अभिभावक भी मानने को तैयार नहीं है। घर तक पहुंच बढ़ाने के लिए 15 लाख चश्मे पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए सोशल मीडिया इंफुलेंसर की मदद लेनी होगी, जो लोगों को जागरूक कर सकें। इसमें स्कूल शिक्षक भी प्रभावी हो सकते हैं।