लखनऊ। अब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) तय करेगा कि किस बच्चे में कॉक्लियर इंप्लांट उपयुक्त होगा। यह भी पहले ही पता चल जाएगा कि इंप्लांट से सुनने या बोलने की क्षमता आएगी या नहीं।
यह तकनीक सेंटर फार बायो मेडिकल रिसर्च सेंटर (सीबीएमआर) के वैज्ञानिक डॉ. उत्तम कुमार ने विकसित की है। इसका उपयोग कर पीजीआई और लोहिया ने 60 मूक-बधिर बच्चों में सफल कॉक्लियर इम्प्लांट किया है। इससे उन परिजनों के लाखों रुपये बच सकते हैं, जिनके बच्चों में इंप्लांट के बाद भी कोई फायदा नहीं होता है। चिकित्सा संस्थानों के
डॉक्टर सीबीएमआर की राय लेने के बाद ही बच्चों में कॉक्लियर इम्प्लांट की योजना बनाते हैं।
एआई तकनीक में सुनने की क्षमता अलग मिलीः सीबीएमआर के वैज्ञानिक डॉ. उत्तम कुमार ने बताया कि फंक्शनल एमआरआई से मूक बधिर बच्चों के दिमाग की
संरचना का अध्ययन किया। इनके सुनने वाले हिस्से व आसपास के अंगों की संरचना में बदलाव को पता करने के लिए एआई की मदद ली। इसमें इन बच्चों में सुनने वाले हिस्से (ऑडिटरी कार्टेक्स) की कार्य क्षमता सामान्य बच्चों से अलग मिली। ऐसे करते हैं इम्प्लांटः डॉ. उत्तम ने बताया कि कॉक्लियर इंप्लांट एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है। इसे ऑपरेशन से कान के अंदर लगाया जाता है, जो कान के बाहर लगे उपकरण से संचालित होता है। कान के पीछे कट लगाते हैं और मैस्टॉइड बोन (खोपड़ी की अस्थाई हड्डी का भाग) से छेद किया जाता है।
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पहले ही पता चल जाएगा कि इंप्लांट से सुनने या बोलने की क्षमता आएगी या नहीं
■ पीजीआई के सेंटर फॉर बायो मेडिकल रिसर्चर सेंटर के वैज्ञानिक की तकनीक
■ सीबीएमआर-एमआरआई जांच के बाद इंप्लांट पर फैसला होता