सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि मतपत्र की व्यवस्था लागू करना व्यावहारिक नहीं लगता। मतों को हाथों से गिनना कठिन होगा।
अदालत ने भारतीय निर्वाचन आयोग से बताने को कहा कि क्या ईवीएम हेरफेर करने वाले प्राधिकारों और अधिकारियों के लिए सजा देने का कोई प्रावधान या कानून है। अदालत ने कहा, कड़ी सजा के बिना हेरफेर की संभावना हमेशा बनी रहेगी।
जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने ईवीएम में दर्ज 100 फीसदी मतों को वीवीपैट पर्चियों से मिलान करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। पीठ ने इस मामले की सुनवाई लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से महज तीन दिन पहले शुरू की है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस खन्ना ने निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह से सवाल किया कि ईवीएम में हेरफेर करने वाले प्राधिकारों और अधिकारियों के लिए सजा का क्या प्रावधान है। इसके जवाब में, वरिष्ठ अधिवक्ता सिंह ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 132 (मतदान केंद्र में कदाचार) और 132ए (मतदान के लिए प्रक्रिया का पालन करने में विफल रहने के लिए जुर्माना) के तहत सजा का प्रावधान है। इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा कि हम यह जानना चाहते हैं कि यदि ईवीएम में हेरफेर करता है तो उसके लिए सजा का कोई विशेष प्रावधान है या नहीं। उन्होंने कहा कि जब तक कड़ी सजा का डर नहीं होगा, हेरफेर की संभावना हमेशा बनी रहेगी। अधिकारियों को डर होना चाहिए कि यदि कुछ गलत किया तो सजा मिलेगी।
तंत्र पर संदेह नहीं होना चाहिए
शीर्ष अदालत ने यह साफ कर दिया कि तंत्र पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि ईवीएम में दर्ज सभी मतों का वीवीपैट पर्चियों से मिलान किया जाना चाहिए। इस पर जस्टिस खन्ना ने सवालिया लहजे में कहा कि 60 करोड़ वीवीपैट पर्चियों की गिनती होनी चाहिए?