अगर यह खबर सही है कि केरल में मॉक ड्रिल में एक खास पार्टी को गलत वोट गए, तो यह बहुत गंभीर मामला है और चुनाव आयोग इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकता। लोकतंत्र में एक-एक वोट की पवित्रता है। अटल सरकार एक वोट से गिर गई थी। हाल में हिमाचल से राज्यसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों को बराबर वोट पडे़, तब कैसे नतीजा निकाला गया, यह भी पूरे देश ने देखा। इसलिए ईवीएम के खिलाफ कही जा रही तमाम बातें सही लगती हैं। देश में दर्जनों विधायक, सांसद हजार वोटों से भी कम के अंतर से जीतते रहे हैं। ऐसे में, यदि ईवीएम में वोट इधर से उधर जाने लगे, तब तो हमारा लोकतंत्र मखौल बनकर रह जाएगा! इसलिए वीवीपैट की पूरी गिनती बहुत आवश्यक है।
मौजूदा चुनाव आयोग वीवीपैट की गिनती और मिलान को लेकर अजीबोगरीब मुद्रा अपनाता रहा है। अव्वल तो इस मसले पर जब विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों ने उससे वक्त मांगा, तो उसने उन्हें समय नहीं दिया। वीवीपैट की सौ फीसदी गिनती पर पहले उसने कहा कि इससे मतगणना में ज्यादा वक्त लगेगा, बाद में उसने कहा कि इससे वोटर की गोपनीयता भंग होगी, फिर दलील आई कि वीवीपैट की व्यवस्था इस हिसाब से तैयार ही नहीं की गई है, फिर एक तर्क कागज की गुणवत्ता को लेकर सुनने को मिला। यही नहीं, चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने विपक्षी दलों पर शेरो-शायरी के जरिये जिस तरह से तंज कसा और अब केरल से आई खबरों से साफ लगता है कि दाल में कुछ न कुछ काला जरूर है।
आखिर क्या वजह है कि जब पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त कह रहे हैं कि वीवीपैट की गिनती करने में बमुश्किल एक दिन अधिक लगेगा, तब वर्तमान चुनाव आयोग आनाकानी कर रहा है? एक तरफ वह सुरक्षित व स्वतंत्र वोटिंग सुनिश्चित करने के नाम पर सात चरणों में मतदान करा रहा है। छोटे-छोटे प्रदेशों में कई-कई चरण तय कर दिए हैं और दूसरी तरफ डाले गए मतों की पवित्रता को लेकर इतना ढीला-ढाला रवैया? चुनाव आयोग की साख कहां पहुंच गई है, यह हालिया सीएसडीएस सर्वे में देख लीजिए। आश्चर्य की बात है कि चुनाव आयुक्तों को इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा! मगर देश को एक साफ-सुथरा चुनाव चाहिए। टीएन शेषन वाली विश्वसनीयता चाहिए और यह भरोसा तभी बन सकेगा, जब ईवीएम के वोट वीवीपैट से सौ फीसद मिलेंगे। यदि देश भर में एटीएम बराबर नोट दे सकती है, तो ईवीएम भी बराबर वोट सुनिश्चित करे।
सर्वेश मांझी, टिप्पणीकार