इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि पुलिसकर्मियों के लिए प्रत्येक आदेश के खिलाफ विभागीय अपील करना आवश्यक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि उप्र अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की नियमावली 1991 के नियम-20 के प्रावधानों के तहत पीड़ित पुलिसकर्मी हरेक दंडादेश के विरुद्ध पहले वरिष्ठ अधिकारी के यहां विभागीय अपील दाखिल करें।
यह आदेश न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी एवं न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की विशेष अपीलीय खंडपीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं एडवोकेट अतिप्रिया गौतम को सुनकर दिया है। मामले के तथ्यों के अनुसार मुख्य आरक्षी भानु प्रताप सिंह यादव पर आरोप था कि वर्ष 2023 में जब वह साइबर सेल जनपद झांसी में नियुक्त था तो एआईपीसी की धारा 419, 420, 120बी, 34 और आईटी एक्ट की धारा 66 (डी) के तहत नामजद अभियुक्त रोशन कुशवाहा के साथ मुलाकात की। अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए दबिश के लिए विवेचक के साथ रहकर भी विवेचक को गुमराह करने के साथ ही अभियुक्त की गिरफ्तारी नहीं की। अभियुक्त रोहन कुशवाहा के बारे में समस्त जानकारी होने के बाद भी अपीलार्थी ने विवेचक व समस्त पुलिस टीम को गुमराह किया गया एवं अभियुक्त को बचाने का प्रयास किया।
अपीलार्थी के विरुद्ध उक्त आरोपों के संबध में उप्र अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम-14 (1) के तहत आरोप पत्र प्रेषित करने के बाद विभागीय कार्यवाही पीठासीन अधिकारी/ पुलिस अधीक्षक नगर झांसी द्वारा की गआई। जांच रिपोर्ट वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक झांसी को प्रेषित की गई, जिसमें अपीलार्थी को सेवा से हटाने की संस्तुति की गई। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक झांसी ने अपीलार्थी को बर्खास्त कर दिया गया। बर्खास्तगी आदेश के विरुद्ध याची ने विभागीय अपील न दाखिल करते हुए सीधे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। एकल पीठ ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी।