Home PRIMARY KA MASTER NEWS SC: एससी-एसटी पर लागू हो क्रीमीलेयर : सुप्रीम कोर्ट

SC: एससी-एसटी पर लागू हो क्रीमीलेयर : सुप्रीम कोर्ट

by Manju Maurya

  सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को राज्यों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण का उचित लाभ देने के लिए अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) का उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दे दी। शीर्ष अदालत ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की तर्ज पर अनुसूचित जाति और जनजातियों के बीच ‘क्रीमीलेयर’ के सिद्धांतों को लागू करने की वकालत की। अभी सिर्फ ओबीसी में क्रीमीलेयर की अवधारणा लागू है।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ में शामिल जस्टिस बीआर गवई ने अपने फैसले में कहा कि राज्यों को एससी-एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान के लिए नीति बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि एससी-एसटी समुदाय के ऐसे व्यक्ति के बच्चे, जो आरक्षण का लाभ ले चुके हैं, को आरक्षण का लाभ नहीं लेने वाले व्यक्ति के बच्चों के बराबर का दर्जा नहीं दिया जा सकता। जस्टिस गवई ने कहा कि सिर्फ और सिर्फ यही संविधान के तहत निहित वास्तविक समानता को प्राप्त कर सकता है। हालांकि, उन्होंने फैसले में यह साफ किया कि एससी-एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करने के जो मानदंड अपनाया जाएं, वे ओबीसी में क्रीमीलेयर की पहचान के लिए अपनाए जा रहे मानकों से अलग होने चाहिए।

जस्टिस गवई ने लिखा कि पहली श्रेणी के माता-पिता के बच्चे को मिलने वाली शिक्षा और अन्य सुविधाएं बहुत अधिक होंगी, शायद अतिरिक्त कोचिंग की सुविधाएं भी मिल रही होंगी, घर का माहौल भी समुचित शिक्षा पाने के लिए होगा। जबकि इसके विपरीत, दूसरी श्रेणी के माता-पिता के बच्चे को शायद यह सब नसीब न हो। जस्टिस गवई ने कहा, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि सेंट पॉल हाई स्कूल और सेंट स्टीफन कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे और देश के पिछड़े और दूरदराज स्थित छोटे से गांव में पढ़ने वाले बच्चे को एक ही श्रेणी में रखना, संविधान में मौजूद समानता के सिद्धांत को खत्म कर देगा। यदि कोई व्यक्ति आरक्षण का लाभ पाकर चपरासी या शायद सफाईकर्मी का पद प्राप्त कर लेता है, तो वह सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग बना रहेगा। सात सदस्यीय संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा शामिल रहे।

विशेषज्ञ की राय

इस आधार पर कर सकते हैं वर्गीकृत

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि एससी और एसटी कानून के उद्देश्यों या पहचाने गए विशिष्ट नुकसान के लिए समान रूप से स्थित नहीं हैं, तो संविधान के अनुच्छेद 15, 16 और 341 (अनुसूचित जातियों को वर्गीकृत करने की राष्ट्रपति की शक्ति) में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को इस सिद्धांत को लागू करने से रोकता हो। उन्होंने कहा, एससी-एसटी को वर्गीकृत किया जा सकता है यदि पहला, भेदभाव के लिए तर्कसंगत सिद्धांत हो, दूसरा यदि तर्कसंगत सिद्धांत का उप-वर्गीकरण के उद्देश्य से संबंध हो।

तेलंगाना नियम अपनाने वाला पहला राज्य होगा

हैदराबाद, एजेंसी। तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उप-वर्गीकरण करने का अधिकार देने के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा, इस फैसले के बाद तेलंगाना उप-वर्गीकरण व्यवस्था लागू करने वाला पहला राज्य होगा।

रेड्डी ने विधानसभा में बताया कि यह तेलंगाना सरकार ही थी जिसने उप-वर्गीकरण के लिए उच्चतम न्यायालय में दलील दी थी। मुख्यमंत्री ने कहा, मैं उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ का शुक्रिया अदा करता हूं। सात में से छह न्यायाधीशों ने कहा कि राज्य सरकारें उप-वर्गीकरण को अपना सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि जरूरी हुआ तो राज्य सरकार मौजूदा नौकरी अधिसूचनाओं में भी उप-वर्गीकरण लागू करने के लिए अध्यादेश लाएगी। बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव ने फैसले का स्वागत किया।

बिना आंकड़ों के नियम कैसे होगा लागू प्रो. रतन लाल

डीयू के हिंदू कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर रतन लाल के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट का फैसला तथ्यों से ज्यादा भावनाओं पर लिया गया लगता है। इसके लिए उचित डाटा जरूरी है। अभी न तो नई जनगणना हुई न ही जाति गणना। जब कोई अधिकृत डाटा ही नहीं है तो कैसे लागू किया जा सकेगा। अलबत्ता राजनीति जरूर होगी। इससे जातियों में तोड़फोड़ की राजनीति को बढ़ावा मिलेगा।

अभी दो राज्यों में लागू है यह व्यवस्था

तमिलनाडु और कर्नाटक ने एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणियों के भीतर विभिन्न उप-श्रेणियों को आरक्षण देने की व्यवस्था की है। तमिलनाडु में पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, और अति पिछड़ा वर्ग जैसी उप-श्रेणियों में ओबीसी आरक्षण लागू किया गया है।

चार कदम जो राज्यों को उठाने होंगे

कितनी अनुसूचित जाति

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2018-19 में देश में 1,263 अनुसूचित जातियां थीं। अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, अंडमान और निकोबार एवं लक्षद्वीप में कोई समुदाय अनुसूचित जाति के रूप में चिह्नित नहीं है।

समीक्षा की जरूरत क्यों पड़ी

पंजाब के एडवोकेट जनरल गुरमिंदर सिंह ने सुनवाई के दौरान तर्क दिया कि भर्ती परीक्षा में 56 अंक हासिल करने वाले पिछड़े वर्ग के सदस्य को 99 हासिल करने वाले उच्च वर्ग के व्यक्ति की तुलना में प्राथमिकता दी जाए। क्योंकि उच्च वर्ग के पास कई सुविधाएं हैं, जबकि पिछड़ा वर्ग इन सुविधाओं के बिना ही संघर्ष करता है। इसलिए इस वर्ग को कोटा जरूरी है।

पिछली सुनवाई में ये हुआ…

6 फरवरी, 2024 सुनवाई के पहले दिन पंजाब सरकार ने दलील दी कि पिछड़े वर्गों में सबसे पिछड़े समुदायों की पहचान की जानी चाहिए। उन्हें रोजगार के अवसरों का लाभ उठाने के लिए साधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए। इस पर बेंच ने पूछा कि पिछड़ी जातियों में मौजूद संपन्न उपजातियों को आरक्षण की सूची से क्यों नहीं हटाया जाना चाहिए। साथ ही पूछा कि आईएएस-आईपीएस अफसरों के बच्चों को कोटा क्या मिलना चाहिए? इन्हें आरक्षण सूची से क्यों न निकाला जाए।

7 फरवरी 2024 अदालत ने कहा कि एससी और एसटी अपनी आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक स्थिति के मामले में एक समान नहीं हो सकते हैं। ये एक निश्चित उद्देश्य के लिए एक वर्ग हो सकते हैं, लेकिन वे सभी उद्देश्यों के लिए एक श्रेणी नहीं बन सकते।

8 फरवरी 2024 कोर्ट ने कहा- सबसे पिछड़ों को फायदा पहुंचाने के लिए दूसरों को बाहर नहीं किया जा सकता। मान लें कि कई सारे पिछड़ा वर्ग हैं और कोई राज्य केवल दो को चुनता है।

ईवी चिन्नैया का क्या मामला था

दरअसल, आंध्र प्रदेश सरकार ने ‘आंध्र प्रदेश अनुसूचित जाति (आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम, 2000 को पारित किया था। इसमें सरकार ने अनुसूचित जाति के वंचित लोगों को आरक्षण का लाभ देने के लिए उप वर्गीकरण करके मुख्यधारा में लाने का प्रावधान किया था। सरकार के इस कदम को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय के 5 जजों की पीठ ने 4 बनाम एक के बहुमत से याचिका को खारिज कर दिया था और याचिकाकर्ता ईवी चिन्नैया को सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करने की छूट दे दी।

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