अनिवार्य सेवानिवृत्ति के विरुद्ध जज की याचिका खारिज
लखनऊ। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अधीनस्थ न्यायालय के एक जज को समय पूर्व दी गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश के विरुद्ध दाखिल याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने अपने आदेश में इस तथ्य का संज्ञान लिया कि वर्ष 2009 से 2019 तक उक्त जज के खिलाफ भ्रष्टाचार और बेईमानी की कई गम्भीर शिकायतें मिली थीं।
यह निर्णय न्यायमूर्ति राजन रॉय, न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने उक्त जज शोभनाथ सिंह की ओर से दाखिल सेवा सम्बन्धी याचिका खारिज करते हुए पारित किया।
याची जज ने हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति के 26 नवंबर 2021 के एक आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने की अनुशंसा की गई थी। राज्य सरकार के 29 नवंबर 2021 के आदेश को भी चुनौती दी थी, जिसमें हाईकोर्ट की अनुशंसा के तहत उसे समय पूर्व सेवानिवृत्ति दे दी गयी थी। पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति कोई सजा नहीं होती, बल्कि इसका प्रयोग तब किया जाता है जब यह लगे कि उक्त कर्मचारी सेवा के लिए उपयुक्त नहीं रह गया है।
जज शोभनाथ सिंह की नियुक्ति यूपी न्यायिक सेवा में बतौर अपर मुंसिफ 2003 में हुई थी। 2008 में उन्हें सिविल जज सीनियर डिवीजन के तौर पर प्रोन्नति दी गई थी। बाद में 2009 से 2019 के बीच उनके खिलाफ दो बार विभागीय, विजिलेंस जांच हुई। हालांकि इन जांचों में उन्हें क्लीन चिट मिल गयी थी। बाद में जिला जज महोबा ने सेवा पुस्तिका में उनके सत्यनिष्ठा और आचरण को लेकर गंभीर टिप्पणियां की थीं। इन तथ्यों को देखते हुए हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति ने 26 नवंबर 2021 को याची जज को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने की अनुशंसा की थी।