Home PRIMARY KA MASTER NEWS Primary ka master: “वर्तमान सिस्टम की मशीन में पिसता शिक्षक: आदेशपालक से भविष्य निर्माता बनने की यात्रा का चिंतन”

Primary ka master: “वर्तमान सिस्टम की मशीन में पिसता शिक्षक: आदेशपालक से भविष्य निर्माता बनने की यात्रा का चिंतन”

by Manju Maurya

शिक्षक का कार्य समाज के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक माना जाता है, क्योंकि वह न केवल ज्ञान का संचार करता है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को गढ़ने का काम भी करता है। परंतु, वर्तमान समय में शिक्षा व्यवस्था में आए बदलावों के साथ शिक्षक का स्थान एक आदेश पालनकर्ता के रूप में दिखने लगा है। यह स्थिति शिक्षक के आत्मविश्वास, उसकी सृजनशीलता और उसकी प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रही है। इस लेख में हम शिक्षक के इस सफर का आत्मावलोकन करेंगे – किस तरह से शिक्षक आदेश पालनकर्ता से भविष्य निर्माता तक की भूमिका में आते हैं, और इसमें किन चुनौतियों का सामना करते हैं।

1. आदेश पालनकर्ता: वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक की स्थिति

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में शिक्षक को एक आदेश पालनकर्ता की तरह देखा जाता है। पाठ्यक्रम, प्रशासनिक आदेश और परीक्षा प्रणाली ऐसी हैं जो शिक्षक को रचनात्मक रूप से सोचने और पढ़ाने की स्वतंत्रता कम देती हैं। शिक्षकों पर एक तयशुदा पाठ्यक्रम को पूर्ण करने का दबाव होता है, जिसके चलते उनका ध्यान छात्रों के समग्र विकास पर केंद्रित करने के बजाय परीक्षा परिणामों पर टिक जाता है। उन्हें अक्सर यह महसूस होता है कि वे सिर्फ एक उपकरण हैं, जो शिक्षा प्रणाली द्वारा तय मानकों का पालन कर रहे हैं।

इस प्रक्रिया में शिक्षक अपनी वास्तविक भूमिका – छात्रों के व्यक्तित्व को गढ़ना, उनके ज्ञान और सृजनात्मकता को बढ़ाना – भूल जाते हैं। आज के डिजिटल युग में, जहाँ सूचना तक पहुंच आसान हो गई है, शिक्षा की गुणवत्ता केवल तथ्यों और आंकड़ों के आदान-प्रदान से नहीं मापी जा सकती। फिर भी, शिक्षकों को बंधी-बंधाई प्रक्रियाओं का हिस्सा बनाया जा रहा है, जिससे उनके रचनात्मक प्रयास सीमित हो जाते हैं।

2. परंपरागत शिक्षक की भूमिका: मार्गदर्शक और प्रेरक

ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो शिक्षक की भूमिका केवल आदेशों का पालन करने तक सीमित नहीं थी। शिक्षक समाज में एक उच्च स्थान पर विराजमान थे और उन्हें मार्गदर्शक, प्रेरक और विचारक के रूप में देखा जाता था। गुरु-शिष्य परंपरा में गुरु का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं था, बल्कि शिष्य को जीवन के हर पहलू में समर्थ बनाना था। यह परंपरा छात्रों के नैतिक, सामाजिक और बौद्धिक विकास पर बल देती थी।

शिक्षक का कर्तव्य केवल अकादमिक जानकारी प्रदान करना नहीं, बल्कि छात्रों के सोचने की क्षमता को जागृत करना और उन्हें समस्याओं का समाधान करने में सक्षम बनाना भी था। शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार प्राप्त करने की योग्यता तक सीमित नहीं था, बल्कि जीवन के प्रत्येक पहलू में सफल और संतुलित व्यक्तित्व का निर्माण करना था।

3. शिक्षक के सामने चुनौतियाँ: शिक्षा प्रणाली और प्रशासनिक दबाव

आज की शिक्षा प्रणाली में शिक्षक का स्वतंत्र रूप से कार्य करना कठिन हो गया है। प्रशासनिक दबाव, नियमित परीक्षण, सरकारी योजनाओं का पालन और नए-नए नियमों के बीच शिक्षक का स्वाभाविक रचनात्मकता कहीं खो जाती है। नई-नई नीतियों के अंतर्गत, शिक्षक को शिक्षण के तरीकों में परिवर्तन लाने के लिए समय-समय पर दबाव का सामना करना पड़ता है, परंतु इन नीतियों को लागू करते समय शिक्षकों के वास्तविक अनुभव और उनके छात्रों की आवश्यकताओं का अक्सर ध्यान नहीं रखा जाता

इसके साथ ही, स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ने के कारण एक-एक विद्यार्थी पर ध्यान देने की क्षमता भी सीमित हो जाती है। अधिक विद्यार्थियों के साथ कक्षा संचालन और व्यक्तिगत ध्यान देने की चुनौती शिक्षकों के कार्य को और कठिन बना देती है।

4. फ्यूचर मेकर्स: शिक्षकों की पुनःस्थापना का अवसर

हालांकि, आज भी शिक्षक के पास मौका है कि वे केवल आदेश पालनकर्ता न रहकर भविष्य निर्माता की भूमिका में पुनःस्थापित हो सकें। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि शिक्षक अपने अंदर के विचारशील और सृजनात्मक व्यक्तित्व को पुनः जागृत करें। शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त कराना नहीं होना चाहिए, बल्कि छात्रों को जीवन की जटिलताओं का सामना करने के लिए तैयार करना भी होना चाहिए।

शिक्षकों को नई-नई शैक्षिक विधियों को अपनाने और अपनी शिक्षण विधियों में विविधता लाने की जरूरत है। इसमें तकनीकी ज्ञान का उपयोग, व्यक्तिगत ध्यान देने की प्रवृत्ति, और संवादात्मक शिक्षण पद्धतियों का समावेश होना चाहिए। शिक्षकों को अपने छात्रों को केवल अकादमिक रूप से नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक रूप से भी शिक्षित करने का प्रयास करना चाहिए।

5. समाज और प्रशासन की भूमिका

शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन लाने के लिए केवल शिक्षकों की जिम्मेदारी ही पर्याप्त नहीं है। इसके लिए शिक्षा प्रणाली, प्रशासन और समाज को भी शिक्षकों के योगदान और महत्व को पुनः समझने की जरूरत है। शिक्षा नीतियों को इस प्रकार से तैयार करना चाहिए कि शिक्षक की स्वतंत्रता बनी रहे और वह अपने शिक्षण में रचनात्मकता का समावेश कर सके। सरकार को शिक्षकों के प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि वे लगातार बदलती दुनिया के साथ तालमेल बैठा सकें और अपने छात्रों को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार कर सकें।

6. निष्कर्ष: शिक्षक की भूमिका का आत्मावलोकन

शिक्षक का सफर आदेश पालनकर्ता से लेकर भविष्य निर्माता तक का है। यह यात्रा आसान नहीं है, लेकिन यह आवश्यक है। शिक्षक न केवल समाज के एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, बल्कि वे छात्रों की सोच, दृष्टिकोण और व्यक्तित्व के निर्माता भी हैं। उन्हें प्रशासनिक दबाव और कठोर नियमों से परे सोचने और कार्य करने की जरूरत है, ताकि वे भविष्य की पीढ़ियों को गढ़ सकें।

शिक्षक का असली मूल्य तब पहचाना जाएगा जब वे सिर्फ निर्देशों का पालन करने के बजाय अपनी रचनात्मकता और विचारशीलता का उपयोग करके छात्रों के लिए एक नई दिशा का निर्माण करेंगे। यह केवल शिक्षक की नहीं, बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी है कि वे इस बदलाव का समर्थन करें और शिक्षक को उनकी वास्तविक भूमिका में पुनःस्थापित करें।

इस आत्मावलोकन के जरिए हम यह समझ सकते हैं कि शिक्षक की वास्तविक भूमिका क्या है और कैसे वह न केवल छात्रों बल्कि समाज के भविष्य के निर्माता के रूप में कार्य कर सकते हैं।

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