इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 (4) के तहत पति द्वारा पत्नी पर व्यभिचार में लिप्त रहने का आरोप है तो फैमिली कोर्ट पहले इस मुद्दे को तय करेगी। इस पर निष्कर्ष के बाद ही वह गुजारा भत्ता देने का आदेश दे सकती है।

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कोर्ट ने कहा कि अपर प्रधान पारिवारिक न्यायाधीश फिरोजाबाद के पत्नी को सात हजार अंतरिम गुजारा भत्ता देने के आदेश में व्यभिचार का मुद्दा तय नहीं किया गया है। इसी के कोर्ट ने अंतरिम गुजारा भत्ता देने के फैमिली कोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है और पत्नी को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल ने पति की अर्जी की सुनवाई करते हुए दिया है। अर्जी में फैमिली कोर्ट फिरोजाबाद के 13 अप्रैल 2023 के अंतरिम आदेश को चुनौती दी गई है।
याची का कहना है कि सीआरपीसी की धारा 125 की पत्नी की अर्जी पर आपत्ति में पति ने उस पर व्यभिचार में रहने का आरोप लगाया लेकिन फैमिली कोर्ट ने इसे तय नही किया और गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है। याची का कहना है कि सीआरपीसी की धारा 125 (4) के अनुसार आपत्ति तय किए बिना फैमिली कोर्ट को गुजारा भत्ता देने का आदेश देने का अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने मुद्दा विचारणीय माना है। हाईकोर्ट इस मामले में सुनवाई करेगा।