दुनियाभर में 25.1 करोड़ बच्चे विद्या के मंदिर में हाजिरी नहीं लगा पा रहे। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ की ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है। दस वर्षों की मुहिम के बावजूद स्कूल न जाने वाले बच्चों में सिर्फ एक फीसदी की गिरावट आई है।
यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्रे अजोले के अनुसार शिक्षा के मामले में संपन्न और गरीब मुल्कों में असमानता का दौर जारी है। कम आय वाले देशों में 33 फीसदी स्कूली शिक्षा से दूर हैं जबकि उच्च आय वाले देशों में ये दर सिर्फ तीन फीसदी है।
कर्ज के जाल में शिक्षा
गरीब और कम आय वाले देशों में शिक्षा बुरी तरह प्रभावित है। ऐसे मुल्क बच्चों को स्कूल पहुंचाने की बजाए कर्ज चुकाने पर जोर दे रहे। शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक मदद भी घटी है। वर्ष 2029 में ये 9.3 फीसदी थी जो 2022 में गिरकर 7.6 फीसदी हो गई है।
एनईपी से उम्मीद
भारत सरकार की नई शिक्षा नीति (एनईपी) से भी सुधार की उम्मीद जगी है। बेहतर शिक्षा देने के साथ उनको कौशल को निखारने पर जोर दिया जा रहा। प्रधानाध्यापकों के शैक्षणिक विकास के लिए सालाना 50 घंटे का प्रशिक्षण बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का माध्यम बनेगा।
भारत में दिखा सुधार
भारत में शिक्षा सुधारी है। भारत वर्ष 2010 में जीडीपी का 2.1 फीसदी हिस्सा बच्चों की शिक्षा पर खर्च करता था। वर्ष 2021 में ये बढ़कर 2.8 फीसदी हो गई है। स्कूल न जाने वाले बच्चों की दर 4.3 फीसदी से घटकर 3 फीसदी हो गई है।
रिपोर्ट की खास बातें
1. तीन साल से कम उम्र के बच्चों को स्कूल भेजने की दर में इजाफा देखा गया।
2. दस में से चार देश शिक्षा पर जीडीपी का चार फीसदी से कम खर्च कर रहे।
3. संपन्न देशों के आधे प्रधानाध्यापकों को नहीं दिया जाता है कोई भी प्रशिक्षण।
4. 31 देशों में प्रधानाध्यपकों की नियुक्ति के लिए नियम-कायदे।
5. 11 देशों में प्रधानाध्यापक चुनने में लैंगिक समानता का ध्यान।