यह संयोग नहीं कि प्रत्येक आविष्कार, असाधारण उपलब्धि, विशाल परियोजना या निर्माण-कार्य के पीछे अनिवार्यत एक सोच होती है, जिसे व्यक्तिगत स्वप्न या संकल्प भी कह सकते हैं। इसका प्रादुर्भाव एक सुविचारित, दीर्घकालीन धारणा के उपरांत ही संभव है। संकल्प इच्छा मात्र नहीं है। जब व्यक्ति में लीक से हटकर कुछ अलग पाने की ऐसी लालसा जग जाए कि अन्यत्र ध्यान विचलित न हो, तब यह कह सकते हैं कि उसने संकल्प ले लिया है। संकल्पित व्यक्ति मनोयोग से अभीष्ट की प्राप्ति में जुट जाता है। उसके व्यवहार में परनिंदा या शिकायती स्वर नहीं होते। अधिसंख्य जनों की भांति वह निजी हितों की आपूर्ति में जीवन नहीं खपा देता, बल्कि अभीष्ट को पाने में उसका दिन का चैन और रातों की नींद उड़ जाती है, और फिर अंतत उसे वह मिल जाता है, जिसके योग्य वह तत्पर हो चुका था।
एक समान शैक्षणिक और सामाजिक-आर्थिक परिवेश के दो व्यक्तियों में कालांतर में आमूल अंतर आ जाता है, तो उनकी सोच और संकल्प के कारण ही। जीवन उसी का सार्थक होता है, जो दूरगामी गंतव्य को ध्यान में रखकर एकाग्रचित्त रहे, भटकाने वाली उलझनों में न पड़े। उसे पता होता है कि घर, स्कूल-कॉलेज, महफिल, बाजार या कार्यस्थल पर और इनके बीच बहुत कुछ है, जो उसे संकल्प से विचलित कर सकते हैं। प्रेरक साहित्य के नामी लेखक नेपोलियन हिल ने कहा है, जो भी उद्देश्य हम तय करते हैं, यदि उचित तरीके अपनाते हुए मनोयोग से उसकी ओर अग्रसर रहते हैं, तो वह हमें अवश्य मिलेगा, बशर्ते चाह साधारण नहीं, बल्कि तीव्रतम और ज्वलंत हो। विडंबना यह है कि बुलंदियों की ओर बढ़ते कदम बहुतेरों को नहीं सुहाते और वे अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न करने की कुचेष्टा करते हैं, तथापि, संकल्प में दृढ़ता होगी, तो विफलताओं और प्रतिरोधों के बावजूद संकल्पकर्ता के प्रयास नहीं थमेंगे। संकल्पधारी की सफलता की गारंटी के पीछे मनुष्य की अथाह क्षमता का सत्य है, जिसका अनुमान किसी-किसी को ही होता है। इसके अतिरिक्त संकल्प जब निजी स्वार्थों से परे, लौकिक कल्याण से प्रेरित हो, तब परालौकिक शक्तियां भी अप्रत्याशित रूप से समर्थन प्रदान करती हैं।
बेहतरी, यश, मान्यता, सफलता आदि हरेक कोई चाहता है, किंतु समझना होगा कि संसार में जो भी श्रेष्ठ है, वह अनायास नहीं है। उसे पाने के लिए साधना, परहित भाव और अडिग संकल्प आवश्यक हैं। नववर्ष का पहला दिन हमें यह अवसर दिखाता है कि शुरुआत यहां से की जा सकती है।
हरीश बड़थ्वाल, टिप्पणीकार