, प्रयागराज
लखनऊ : हाई कोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद ने 25 फरवरी मंगलवार को न्यायिक कार्य से विरत रहने का निर्णय लिया है। यह कदम हाई कोर्ट की प्रधानपीठ में जजों की स्वीकृत पद से आधे से अधिक पद रिक्त होने, समय से नियुक्ति नहीं होने और विचाराधीन मुकदमों के बढ़ते बोझ की समस्या को लेकर है। इससे पहले एसोसिएशन ने उप्र बार काउंसिल की तरफ से एडवोकेट एक्ट में अनुचित संशोधन संबंधी प्रस्ताव के विरोध सहित जजों के खाली पद भरने के मुद्दे पर न्यायिक कार्य के बहिष्कार का फैसला लिया था। अब केंद्र सरकार ने एडवोकेट एक्ट बिल 2025 पर पुनर्विचार के आश्वासन दिया है। इसे देखते हुए
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जजों के खाली पद भरने की मांग में न्यायिक कार्य बहिष्कार किया जाएगा। यह जानकारी संयुक्त सचिव (प्रेस) पुनीत शुक्ल ने दी है। उधर, अवध बार सहित जिले की समस्त अधीनस्थ अदालतों की बार एसोसिएशन के अधिवक्ता मंगलवार को न्यायिक कार्य से विरत रहेंगें। अवध बार के अध्यक्ष आरडी शही की अध्यक्षता में हुई बैठक में अदालतों में काम न करने का निर्णय लिया गया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की प्रधानपीठ में न्यायमूर्तियों की कुल स्वीकृत संख्या 160 है किंतु आज तक यह संख्या कभी भरी नहीं गई। अधिकतम 110 जजों की ही नियुक्ति की जा सकी। हाई कोर्ट कलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट को तीन
चरणों में लगभग 30 नाम भेजे हैं, जो विचाराधीन हैं। नियुक्ति लंबित होने व न्यायमूर्तियों के लगातार सेवानिवृत्त होने के कारण आधी से भी कम संख्या रह गई है। विचाराधीन मुकदमों की संख्या में इजाफा हुआ है। वर्तमान में यह संख्या बढ़कर 11 लाख 49 हजार 453 है। लगभग 25 करोड़ की जनसंख्या वाले प्रदेश की अदालतों में मुकदमों का बढ़ता बोझ व वादकारियों को न्याय मिलने में देरी चिंता का विषय है। हाल ही में एक सेमिनार में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति की मौजूदगी में जजों की नियुक्ति का मुद्दा उठाया था। इस पर सभी ने चिंता जताई थी, किंतु कुछ हुआ नहीं।