राहुल पाण्डेय अविचल की कलम से आज की सुनवाई का सारांश @RahulGPande 9415226460
यह सुनवाई शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) की अनिवार्यता और इसके विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित थी, विशेष रूप से उन शिक्षकों के संदर्भ में जो पहले से चयनित और नियुक्त हैं।

प्रथम सत्र:
गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि TET पदोन्नति (Promotion) के लिए अनिवार्य नहीं है। प्रत्येक राज्य ने अपने शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यता निर्धारित की है, और इस स्थिति से निपटने का यही प्राथमिक और मुख्य मार्ग होना चाहिए। उनके तर्क के मुख्य बिंदु निम्नलिखित थे:
1. RTE अधिनियम की धारा 23 में स्पष्ट छूटें उपलब्ध हैं, और 2011 का संशोधन इन छूटों को प्रभावित नहीं करता। राज्य सरकारें TET के बजाय अन्य ब्रिज कोर्स (Bridge Courses) सुझा सकती हैं।
2. केन्द्रीय विद्यालय संगठन (KVS) भी NCTE के दायरे से बाहर हैं और वहाँ TET अनिवार्य नहीं है।
3. TET को परम आवश्यक नहीं माना जा सकता, क्योंकि 2010 की अधिसूचना में शिक्षकों को स्पष्ट छूट प्रदान की गई थी।
4. 2016 में तमिलनाडु हाईकोर्ट में सुने गए एक मामले में, अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह TET के स्थान पर अन्य विकल्पों को लागू करे, जिसके परिणामस्वरूप रिफ्रेशर कोर्स (Refresher Courses) लागू किए गए थे, और इसे किसी ने चुनौती नहीं दी थी।
द्वितीय सत्र:
अटॉर्नी जनरल (AG) ने तर्क दिया कि:
1. RTE अधिनियम अल्पसंख्यक संस्थानों (चाहे वे सहायता प्राप्त हों या गैर-सहायता प्राप्त) पर भी लागू होगा, क्योंकि वे भी शैक्षणिक संस्थान हैं और राज्य/देश के एजेंडे और लक्ष्यों में भाग लेना चाहिए।
2. NCTE द्वारा निर्धारित शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता सभी शैक्षणिक संस्थानों पर लागू होगी, भले ही वे सरकारी सहायता प्राप्त हों या नहीं, क्योंकि योग्यता में छूट देने का अर्थ है शैक्षिक मानकों को कम करना।
3. अनुच्छेद 21A के तहत “निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा” का अर्थ केवल शिक्षा देना नहीं, बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना भी है। इसलिए, नियमों और विनियमों का पालन करना अनिवार्य है।
4. यदि कई शिक्षक इस पात्रता मानक को पूरा नहीं करते हैं और उनकी नौकरियाँ खतरे में पड़ती हैं, तो यह अदालत पर निर्भर करेगा कि वह कोई छूट देने या कोई समाधान निकालने का निर्णय ले।
अदालत का दृष्टिकोण:
अदालत ने कहा: “आप (सरकार) सही कह रहे हैं कि यह मुद्दा व्यापक बहस का विषय बन सकता है, लेकिन यह हमारे ऊपर नहीं है कि हम शिक्षकों को छूट दें या नहीं। यह आपका उत्तरदायित्व है कि आप हमें समाधान दें, क्योंकि आप सरकार हैं।”
इसके अलावा, अदालत ने सरकार को उन शिक्षकों के चयन और भर्ती पर स्पष्ट उत्तर देने को कहा, जो 23.08.2010 की NCTE अधिसूचना से पहले नियुक्त किए गए थे, और उनके पदोन्नति से संबंधित स्थिति पर भी स्पष्टीकरण मांगा।
अगली सुनवाई अगले गुरुवार को होगी।
अविचल
Pramati Case (2014) में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अनुच्छेद 21A के तहत सभी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए न्यूनतम योग्यता (Minimum Qualifications) आवश्यक है।
हालांकि, इस मामले का मुख्य मुद्दा यह था कि क्या RTE अधिनियम अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू होता है या नहीं। कोर्ट ने निर्णय दिया था कि:
1. पूर्णतः अल्पसंख्यक और गैर-सहायता प्राप्त (Unaided) संस्थान RTE अधिनियम के दायरे से बाहर होंगे।
2. सहायता प्राप्त (Aided) अल्पसंख्यक संस्थानों पर RTE अधिनियम लागू होगा, लेकिन इसमें कुछ हद तक स्वायत्तता दी जा सकती है।
लेकिन शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता के सवाल पर कोर्ट ने यह जरूर कहा था कि यह शैक्षणिक गुणवत्ता बनाए रखने के लिए आवश्यक है, और इसे सभी स्कूलों में लागू किया जाना चाहिए।
अगर वर्तमान मामले में सरकार यह तर्क देती है कि Pramati Judgment पहले ही न्यूनतम योग्यता को अनिवार्य बता चुकी है, तो यह उन शिक्षकों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है जो NCTE मानकों से पहले नियुक्त हुए थे और छूट की मांग कर रहे हैं।
मगर मेरी नजर में Pramiti case में RTE एक्ट सेक्शन 23(1) और 23(2) पर बहस नहीं हुई थी। इसलिए कोर्ट और सरकार कोई नहीं चाहेगी कि PRE RTE शिक्षकों को सेवा में बने रहने के लिए टीईटी देना पड़े। जबकि यदि केस हावी हुआ तो मामला लार्जर बेंच भेजना पड़ेगा। मगर मैं लार्जर बेंच भेजने का पक्ष नहीं लूंगा।
मामला शीघ्र डिसाइड हो यही मेरा पक्ष है।
राहुल पांडे अविचल