सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि स्कूल स्थानांतरण प्रमाणपत्र किशोर न्याय अधिनियम (जेजे एक्ट) के तहत किसी व्यक्ति के उम्र निर्धारित करने का आधार नहीं हो सकता है।
शीर्ष कोर्ट ने नाबालिग का अपहरण कर यौन उत्पीड़न करने और बाल विवाह को बढ़ावा देने के आरोप में पॉक्सो कानून के तहत दर्ज मामले में युवक को बरी करते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला दिया है। जस्टिस एस. रवींद्र भट और अरविंद कुमार की पीठ ने एक फैसले में कहा कि ‘किशोर न्याय अधिनियम की धारा 94 के तहत जब भी किसी व्यक्ति की उम्र को लेकर विवाद उत्पन्न होता है और वह (लड़का / लड़की) पॉक्सो कानून के तहत पीड़ित है तो निम्नलिखित दस्तावेजों पर भरोसा करना होगा।
इसके तहत स्कूल के जन्मतिथि प्रमाण पत्र या संबंधित परीक्षा बोर्ड द्वारा जारी मैट्रिकुलेशन या इसके समकक्ष प्रमाण पत्र। यदि इनमें से कोई दस्तावेज नहीं है तो उम्र का निर्धारण ऑसिफिकेशन परीक्षण या किसी अन्य चिकित्सा आयु निर्धारण परीक्षण द्वारा किया जाएगा.