इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुलंदशहर में सहायक अध्यापक के पद पर 32 वर्ष तक कार्य करने वाले शिक्षक को पद के लिए योग्य न मानते हुए बीएसए के आदेश में हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि यह साबित नहीं हो पाया कि याची ने कोई धोखाधड़ी की है। ऐसे में उससे वर्षो का वेतन वसूलना अन्याय होगा।
न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की कोर्ट ने याची को दिया गया वेतन तथा अन्य वित्तीय लाभ नहीं वसूलने का आदेश देते हुए याचिका निस्तारित कर दी। याची की ओर से अधिवक्ता प्रभाकर अवस्थी और विभाग की ओर से शासकीय अधिवक्ता एलएम सिंह ने पक्ष रखा। मामले में याची शिवदत्त शर्मा, बड़ागांव खास, बुलंदशहर के रहने वाले हैं। याची पिता की मृत्यु पर मृतक आश्रित कोटे से जूनियर हाईस्कूल, बड़ागांव, अरनिया में चौकीदार के पद पर नियुक्त हुआ। इस दौरान अवैतनिक अवकाश लेकर बीएड किया।
फिर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के आदेश पर परिषदीय अध्यापकों की नियुक्ति/पदोन्नति समिति की ओर से वह प्राइमरी स्कूल बादौली , दनकौर, बुलंदशहर में सहायक अध्यापक नियुक्त हुए। तकरीबन 32 वर्ष तक नौकरी के बाद सेवानिवृत्ति की तिथि 31 मार्च, 2019 से कुछ माह पहले वह प्राथमिक विद्यालय सलेमपुर, पहाड़गढ़ी में प्रधानाचार्य के पद पर थे।
इसी दौरान 21 दिसबंर 2018 को खंड शिक्षा अधिकारी अरनिया ने नोटिस दिया कि उन्होंने मृतक आश्रित के रूप में प्रथम नियुक्ति को छिपाते हुए सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति ली। जांच पड़ताल के बाद बीएसए ने याची की नियुक्ति को निरस्त कर दिया।
फिर याची ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने कहा, चौकीदार के पद से कब त्याग पत्र दिया और किस प्रक्रिया के अंतर्गत परिषदीय अध्यापकों की नियुक्ति/पदोन्नति समिति ने उन्हें सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति दी, इसका कोई साक्ष्य नहीं है। साथ ही यह भी कहा कि सहायक अध्यापक पद की योग्यता बीटीसी है, जो याचिकाकर्ता के पास नहीं है। ऐसे में वह सहायक अध्यापक पद के लिए योग्य नहीं था. लेकिन वेतन की वसूली न करने का आदेश दिया।