बाराबंकी। परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की मौजूदगी बढ़ने का नाम नहीं ले रही है। जब बच्चे ही मौजूद नहीं रहेंगे तो फिर उनकी पढ़ाई कैसे हो सकेगी। यह स्थिति तब है जब व्यवस्था को सुधारने व पढ़ाई का माहौल बनाने के लिए जिले में करीब 70 एआरपी व अन्य कर्मचारियों को हर माह लाखों का वेतन दिया जा रहा है।
जिले में 2626 परिषदीय स्कूलों में वर्तमान में करीब 2.85 लाख बच्चे पंजीकृत है और उन्हे पढ़ाने के लिए आठ हजार से अधिक शिक्षक शिक्षिकाएं हैं। कायाकल्प के तहत स्कूलों में बेहतर व्यवस्थाओं पर बीते पांच साल में कराेड़ों खर्च हो चुके है। लेकिन जिले के परिषदीय स्कूलों में बच्चों की हाजिरी नहीं बढ़ रही है। पिछले साल तो जिले पर सबसे कम उपस्थिति का कलंक भी लग चुका है। 75 जिलों में बाराबंकी सबसे आखिरी पायदान पर रहा था। इसके बाद 400 से अधिक शिक्षकों का वेतन रोका गया था। स्कूलों में व्यवस्था सुधारने व निपुण भारत अभियान को लेकर करीब 70 एआरपी भी तैनात किए गए हैं। जिनका काम स्कूलों का भ्रमण करना है। इनमें तीन राज्य स्तरीय सदस्य है। इनके वेतन पर हर माह 45 से 50 लाख रुपये खर्च होते हैं। लेकिन इसके बावजूद स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। तीन दिन पहले बीएसए संतोष देव पांडेय ने 20 से 40 फीसदी उपस्थिति वाले ऐसे ही 95 स्कूलों को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण भी मांगा है।
हरिनारयणपुर में 21 प्रतिशत हाजिरी
रामनगर ब्लॉक के हरिनारयणपुर गांव के प्राथमिक स्कूल में जुलाई माह की समीक्षा में पाया गया कि इस यहां के विद्यालय में एक चौथाई भी बच्चे पढ़ने नहीं आए। मात्र 21 प्रतिशत बच्चों की हाजिरी ही लग सकी।
नामीपुर में 20.41 फीसदी बच्चे आए पढ़ने
केस दो- सिरौलीगौसपुर ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय नामीपुर गांव के परिषदीय विद्यालय में बीते जुलाई माह में मात्र 20.41 प्रतिशत बच्चों की हाजिरी ही रही। यह ब्लॉक का इकलौता स्कूल है जहां इतनी कम उपस्थिति पाई गई है।
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76 फीसदी बच्चे नहीं पहुंचे स्कूल की चौखट तक
दरियाबाद ब्लॉक के उच्चा प्राथमिक विद्यालय में जुलाई माह में करीब 76 फीसदी बच्चे स्कूल की चौखट पर नहीं आए। यहां हाजिरी करीब 24 प्रतिशत पर सिमट गई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पढ़ाई का स्तर क्या होगा।
स्कूलों में हाजिरी बढ़ाने के लिए शिक्षकों को अभिभावकों से संपर्क करने को कहा गया है। खंड शिक्षा अधिकारियों को पूर्व में नोटिस दी गई थी। मिड डे मील में भोजन करने वाले बच्चों की संख्या के हिसाब से रोज समीक्षा की जा रही है।
– संतोष देव पांडेय, बीएसए