लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने परिषदीय शिक्षकों की तबादला नीति के कुछ अंशों को निरस्त कर दिया है। अदालत ने बाद में सेवा में आने वाले शिक्षकों का पहले तबादला करने और विद्यार्थी-शिक्षक अनुपात के आधार पर शिक्षकों के समायोजन के मानक को सही न मानते हुए इसे निरस्त कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने पुष्कर सिंह चंदेल, राहुल पांडेय, सौरभ शुक्ला, उदय प्रताप सिंह व अन्य शिक्षकों की याचिका पर दिया।
याचिका में शिक्षकों ने मुख्यतः बाद में सेवा में आने वाले शिक्षकों का पहले तबादला करने के प्रावधान का विरोध किया था। उनका कहना था इस नियम से जूनियर शिक्षकों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा और उनका स्थानांतरण होता रहेगा, जबकि
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वरिष्ठ शिक्षकों के तबादले की संभावना कम रहेगी। इसके अलावा शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात के आधार पर शिक्षकों की तबादला नीति को चुनौती दी गई। याचियों का तर्क था कि यह नियम शिक्षा के अधिकार और शिक्षक सेवा नियमावली के खिलाफ है।
तबादला नीति के ये अंश किए निरस्त
अदालत ने सभी पक्षों की सुनने के बाद 26 जून 2024 को जारी आदेश के 3, 7, 8 और 9वें बिंदु को निरस्त कर दिया है। आदेश के तीसरे बिंदु में मानकों के अनुसार अधिक शिक्षकों की संख्या वाले विद्यालयों और शिक्षकों की आवश्यकता वाले विद्यालयों को चिह्नित करने, 7वें बिंदु में जूनियर शिक्षकों को अधिक मानते हुए उनके स्थानांतरण की सूची, 8वें बिंदु में विद्यार्थी-शिक्षक अनुपात को तय करने के तरीके और 9वां बिंदु एक ही विषय के दो अध्यापकों के कार्यरत होने पर जूनियर शिक्षकों का तबादला प्राथमिकता पर करने का प्रावधान था।