कानपुर। ऊसर जमीन (लवणीय व क्षारीय भूमि) पर कम उत्पादन से परेशान किसानों के लिए अच्छी खबर है। कानपुर के वैज्ञानिकों ने गेहूं की नई प्रजाति विकसित की है। यह न सिर्फ ज्यादा उत्पादन देगी बल्कि कीट व रोगों से होने वाले नुकसान से भी सुरक्षित रहेगी। नई प्रजाति का नाम के-2010 रखा गया है।
यह प्रजाति लखनऊ, अलीगढ़, आगरा, प्रयागराज और कानपुर मंडल के किसानों के लिए लाभदायक साबित होगी। किसानों को इसके बीज अगले साल से मिलने शुरू हो जाएंगे। इससे करीब 4.5 लाख हेक्टेयर में खेती करने वाले किसानों को सहूलियत होगी।
- केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE), दिल्ली : “सिंगल गर्ल चाइल्ड छात्रवृत्ति योजना” के लिए नीचे दिए गए लिंक से करें ऑनलाइन आवेदन, देखें
- अब वाट्सएप पर वायस मैसेज भी पढ़ सकेंगे, ऐसे करें नए फीचर का उपयोग
- Primary ka master: नए सिरे से होगा विद्यालय प्रबन्ध समितियों का गठन
- Primary ka master: आपसी झड़प में प्राइमरी पाठशाला की सहायक शिक्षिका हुईं बेहोश
- Primary ka master: निरीक्षण में नदारद मिले 121 शिक्षक, शिक्षामित्र व अनुदेशक
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के बीज एवं प्रक्षेत्र निदेशक डॉ. विजय कुमार यादव के मुताबिक करीब आठ साल की रिसर्च के बाद ऊसर भूमि के लिए गेहूं की यह प्रजाति विकसित की है।
के-2010 को केंद्र और यूपी सरकार से मान्यता भी मिल गई है। वैज्ञानिकों की टीम अगले वर्ष के लिए बीज तैयार करेगी।
अधिक तापमान में सुरक्षित रहेंगे दाने
डॉ. विजय यादव ने बताया ऊसर भूमि पर ज्यादा नुकसान अधिक तापमान से होता है। वर्तमान में जितनी प्रजातियां हैं, उनमें अधिक तापमान पर दाने सिकुड़ जाते हैं। जबकि के-2010 के दाने अधिक तापमान में भी सिकुड़ते नहीं हैं, इसके दाने सुडौल रहते हैं।
9.75 फीसदी हुआ अधिक उत्पादन
डॉ. विजय के मुताबिक के-2010 प्रजाति में चेक प्रजाति से 9.75 फीसदी अधिक उत्पादन मिला है। इस वैरायटी का चेक केआरएल-283 से किया गया था। यह प्रजाति कम समय में 125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है।
सीएसए के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई गेहूं की नई प्रजाति लवणीय व क्षारीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसमें अच्छे उत्पादन के साथ कीट व रोग से होने वाले नुकसान से भी किसान सुरक्षित रहेंगे।
– डॉ. आनंद कुमार सिंह, कुलपति सीएसए विश्वविद्यालय