प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, कर्मचारी का पक्ष जाने बिना सेवा पुस्तिका में जन्मतिथि बदलना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है। कोर्ट ने नगर निगम प्रयागराज के कर्मचारियों की आयु में किए गए एकतरफा बदलाव को रद्द कर दिया। कहा, मूल रिकॉर्ड के अनुसार ही कर्मचारियों को सेवा में बहाल करें।

यह आदेश न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की पीठ ने रामनरेश और पांच अन्य की याचिका पर दिया। कर्मचारी रामनरेश, शिवमूरत, सुभाष, संत लाल पाल, छोटे लाल और राममूरत नगर निगम में कार्यरत हैं। सभी कर्मचारी दैनिक वेतन भोगी के रूप में काम कर रहे थे। एक जून 1992 को उन्हें नियमित कर दिया गया। सभी ने कार्यभार ग्रहण किया। सीएमओ की ओर से जारी प्रमाणपत्र के अनुसार सेवा पुस्तिका में जन्मतिथि दर्ज की गई।
वहीं, 2010 में इनकी उम्र बदल दी गई। कुछ दिनों बाद बायोमीट्रिक उपस्थिति प्रणाली शुरू की गई। इस दौरान उपस्थिति सेवा पुस्तिका में दर्ज जन्मतिथि से मेल न खाने के चलते अस्वीकार कर दी गई।
कर्मचारियों ने सेवा पुस्तिका प्राप्त की तो पता चला कि उनकी जन्मतिथि में एकतरफा नि बदलाव कर दिया गया है। इससे उनकी सेवा एक से आठ साल तक कम हो गई थी। इस पर विभाग से समाधान नहीं होने पर कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
याची के अधिवक्ता सुचिता मेहरोत्रा ने दलील दी कि सरकारी सेवा में प्रवेश के समय सेवा पुस्तिका में दर्ज ही सही आयु होगी। इसमें किसी भी परिस्थितियों में बदलाव नहीं किया जा सकता है। यह भी दलील दी कि आयु में बदलाव के दौरान कर्मचारियों का पक्ष नहीं जाना गया। यह प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है। कोर्ट ने सेवा पुस्तिका में कर्मचारियों की आयु में किए गए बदलाव को रद्द कर दिया। कहा, सभी को मूल रिकॉर्ड में दर्ज आयु के अनुसार सभी लाभ दिए जाएं।