वाराणसी: जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों में नियुक्त कार्यकर्ता व सहायिकाएं उसी गांव के रहने वाले होते हैं। इसके बावजूद लंब समय बाद खुले आंगनबाड़ी केंद्रों में इस सप्ताह ज्यादातर केंद्रों के ताले नहीं खोले जा सके। इसका खामियाजा यहां पढ़ने वाले बच्चों को उठाना पड़ रहा है। शनिवार को सेवापुरी, पिंडरा, लोहता, रोहनिया अमर उजाला की पड़ताल में भी यह जानकारी सामने आई कि ग्रामीण केंद्रों में उसी गांव की रहने वाली कार्यकर्ता, सहायिकाओं की तैनाती है। इसके बाद भी केंद्र संचालन नियमित नहीं हो पा रहा है। ऐसे में आंगनबाड़ी केंद्रों के संचालन और व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।
जिले में इस समय करीब 3914 आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जिन पर करीब 3600 आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और इतनी ही सहायिकाओं की तैनाती है। अगर संचालन की बात करें तो नियमानुसार जिस गांव में केंद्र होता है, वहां नियुक्त होने वाली कार्यकर्ता, सहायिका उसी गांव की निवासी होनी चाहिए। इसकी वजह योजनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करने के साथ ही उसका लाभ दिलाना है। कोरोना काल में बंद केंद्र चार अक्तूबर से खुल गए हैं। सप्ताह में दो दिन सोमवार, बृहस्पतिवार को केंद्र खोला जाना है। इस सप्ताह सोमवार और बृहस्पतिवार को दो दिन में जिले में हरहुआ, सेवापुरी, काशी विद्यापीठ ब्लॉक, चोलापुर, चौबेपुर, पिंडरा आदि गांवों में अधिकांश केंद्रों पर सुबह 10 बजे तक ताला ही लटकता रहा।
पदों का नहीं भरा जाना भी मुख्य वजह
जिले में कार्यकर्ता और सहायिकाओं के मिलाकर 679 पद खाली होने की वजह से इसका असर केंद्र संचालन पर पड़ने लगा है। पदों के न भरे जाने की वजह से अब भी बहुत से केंद्र या तो खुल नहीं पा रहे हैं या फिर एक-एक कार्यकर्ता और सहायिका पर दो-दो केंद्र के देखरेख की जिम्मेदारी दी गई है। ऐसे में डोर टू डोर बच्चों का पंजीकरण, राशन का वितरण सहित अन्य काम भी प्रभावित हो रहा है।
केंद्रों पर कार्यकर्ता और सहायिकाओं की नियुक्ति उसी गांव की महिलाओं की होती है। इसमें विधवा, परित्यक्ता को प्राथमिकता दी जाती है। जिले में सभी केंद्रों पर संबंधित गांव की रहने वाली महिलाओं की ही तैनाती है। खाली पदों के बारे में भी नियमानुसार कार्रवाई चल रही है।-दुर्गेश प्रताप सिंह, जिला कार्यक्रम अधिकारी