नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति में देरी से मृत सरकारी कर्मचारी के परिवार को तत्काल मदद प्रदान करने का उद्देश्य समाप्त हो जाता है। जस्टिस एमआर शाह और संजीव खन्ना की पीठ ने दावा करने में देरी का हवाला देते हुए एक मृत सेल कर्मचारी के बेटे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी प्रदान करने के उड़ीसा उच्च न्यायालय और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के फैसले को रद कर दिया।
उच्च न्यायालय और न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ स्टील अथारिटी आफ इंडिया लिमिटेड (सेल) की याचिका पर फैसला सुनाते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुकंपा के आधार पर नौकरी के लिए दावा या अदालत जाने में देरी प्रभावित परिवार को तत्काल मदद की भावना के विरुद्ध है।
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने सेल को अपने मृत कर्मचारी के दूसरे बेटे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने का निर्देश दिया था। न्यायाधिकरण के इस निर्देश को हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा था।
इस मामले में मृत कर्मचारी के दूसरे बेटे से पहले उसके बड़े बेटे ने भी 1977 में अनुकंपा के आधार पर नौकरी के लिए सेल के अधिकारियों से संपर्क किया था। कर्मचारी की मौत उसी साल हुई थी। उस समय प्रचलित नियमों के तहत उसका अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया।
शीर्ष अदालत ने कहा, उपरोक्त तथ्य के बावजूद अनुकंपा के आधार पर नौकरी के लिए दूसरी बार 1996 में आवेदन दिया गया। इस बार आवेदन दूसरे बेटे ने दिया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 19 साल के लंबे अंतराल के बावजूद न्यायाधिकरण ने याचिकाकर्ता सेल को मामले पर पुनर्विचार करने और दूसरे बेटे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने का निर्देश दिया, जिसे बाद में हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा। हाई कोर्ट और न्यायाधिकरण के आदेश को दरकिनार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि देरी और लापरवाही के कारण यह व्यक्ति अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के योग्य नहीं है।