प्राथमिक विद्यालयों की शिक्षक भर्ती से बीएड अभ्यर्थियों को बाहर करने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद से देशभर में हड़कंप मचा हुआ है। 11 अगस्त को आए फैसले के व्यापक प्रभाव को देखते हुए पश्चिम बंगाल के स्कूली शिक्षा विभाग ने सभी जिलों से ऐसे बीएड प्रशिक्षित शिक्षकों की सूची तलब कर ली है जिन्होंने छह महीने का अनिवार्य ब्रिज कोर्स नहीं किया है।
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने 28 जून 2018 को प्राथमिक स्कूलों की भर्ती में बीएड अर्हता को इस शर्त के साथ मान्य किया था कि ऐसे शिक्षकों को नियुक्ति के दो साल के अंदर छह महीने का ब्रिज कोर्स अनिवार्य रूप से करना होगा। उत्तर प्रदेश में 69000 सहायक अध्यापक भर्ती के तहत पहले बैच में 31277 और दूसरे बैच में 36590 शिक्षकों को क्रमश अक्तूबर और दिसंबर 2020 में नियुक्ति दी गई थी।
इनमें हजारों की संख्या में बीएड अर्हताधारी शिक्षक भी शामिल हैं, लेकिन नियुक्ति के ढाई साल से अधिक समय बीतने के बावजूद गाइडलाइन के अनुसार एनसीटीई से मान्य किसी संस्था से ब्रिज कोर्स नहीं कराया जा सका है।
बीएड अर्हताधारी शिक्षक इस बात को लेकर परेशान हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के एक सप्ताह बाद भी उनके ब्रिज कोर्स को लेकर कोई हलचल नहीं है।
बीएड डिग्रीधारी ने लखनऊ बेंच में की कैविएट
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तरह-तरह की चर्चाएं उड़ रही हैं। ऐसे में 69000 भर्ती में बीएड के आधार पर चयनित लखनऊ के एक शिक्षक अनुराग पांडेय ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में कैविएट याचिका दायर की है। कोर्ट से अनुरोध किया है कि 69000 भर्ती में बीएड अर्हता को लेकर कोई याचिका होती है तो उसका पक्ष भी सुना जाए।
शिक्षकों ने स्वयं हाईकोर्ट में की थी याचिका
69000 भर्ती में चयनित बीएड डिग्रीधारी शिक्षकों ने छह महीने का अनिवार्य प्रशिक्षण कराने के लिए स्वयं हाईकोर्ट में याचिका की थी। हाईकोर्ट ने 27 अप्रैल 2022 को साफ किया था कि सरकार यदि समय रहते प्रशिक्षण नहीं कराती और कोई विषम परिस्थिति पैदा होती है तो उसके लिए बीएड डिग्रीधारी शिक्षक जिम्मेदार नहीं होंगे। सचिव बेसिक शिक्षा परिषद प्रताप सिंह बघेल ने बीएड डिग्रीधारी शिक्षकों को छह महीने का ब्रिज कोर्स कराने संबंधी प्रस्ताव शासन को भेजा था। लेकिन इसके बावजूद प्रशिक्षण नहीं कराया जा सका।