मौसम विभाग को जल्द ही लिडार तकनीक मिलने वाली है, जिसके जरिये वह अपने पूर्वानुमानों को सटीक बना पाएगा। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने इसे विकसित किया है, जिसे मेघसूचक नाम दिया गया है।

- फर्जी दस्तावेजों पर नौकरी कर रहे शिक्षकों की अब खैर नहीं, सरकार चलाएगी अभियान
- यू-डायस प्लस पोर्टल पर सत्र 2024-25 में नामांकित बच्चे जो ड्राप बाक्स में कक्षा 05 में प्रदर्शित हैं, को अध्यापकों द्वारा बिना जानकारी प्राप्त किये ही इनएक्टिव कर दिये जाने के सम्बन्ध में।
- बिहार STET अंकपत्र पुनः वितरण संबंधी आदेश जारी
- शैक्षिक सत्र 2025-26 में उच्च प्राथमिक विद्यालयों, कम्पोजिट विद्यालयों तथा के०जी०बी०वी० में मीना मंच के पुनर्गठन तथा साप्ताहिक गतिविधियों एवं प्रमुख दिवसों के आयोजन हेतु कैलेण्डर जारी किये जाने के सम्बन्ध में।
- BPSC Teacher मकान किराया भत्ता अपडेट करने के संबंध में
मौसम के पूर्वानुमान के लिए अभी तक राडार और उपग्रह के आंकड़ों पर ही निर्भरता बनी हुई है। अब लिडार तकनीक के इस्तेमाल से मौसम का सही-सही पूर्वानुमान करना आसान हो जाएगा। डीआरडीओ ने मौसम विभाग और नौसेना मुख्यालय के समक्ष मेघसूचक का प्रदर्शन किया है। डीआरडीओ का दावा है कि यह तकनीक सभी मानकों पर खरी उतरी है। डीआरडीओ की देहरादून स्थित प्रयोगशाला इंस्ट्रूमेंट रिसर्च एंड डवलपमेंट इस्टेबलिसमेंट ने इसे विकसित किया है। डीआरडीओ के सूत्रों के अनुसार इस तकनीक को जल्द ही मौसम विभाग को सौंपा जा सकता है।
इस तरह करेगी काम : लिडार तकनीक में लेजर के जरिये बादलों एवं धूलकणों का आकलन किया जाता है। इसमें एक लेजर बीम के जरिये किरणें बादलों एवं धूलकणों तक जाती हैं तथा उनसे टकराकर वापस लौटती हैं।