अखबारों की खबरें इस तरह माहौल बना रही है जैसे शिक्षक अपने दैनिक कर्तव्यों को करना नहीं चाहता। अखबारों के माध्यम से शिक्षक बिरादरी को लेकर एक नकारात्मक माहौल बनाया जा रहा है लेकिन शिक्षक ऑनलाइन हाजिरी का विरोध क्यों कर रहे हैं इसको लेकर किसी समाचार पत्र एवं सामाजिक संगठन ने बात करना भी मुनासिब नहीं समझा है। यदि शिक्षकों की समस्याओं पर गौर किया जाए तो आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी।
एसी कमरों में बैठने वाले हुक्मरान यह नहीं जानना चाहते कि जो विद्यालय दुर्गम क्षेत्रों में है जहां आवागमन का कोई साधन नहीं है , पगडंडी वाली रास्ताएं है जहां किसी वाहन से चल पाना संभव नहीं है वहां अध्यापक कैसे पूरे वर्ष पहुंचेगा? लोग प्रश्न उठाएंगे इस विषय पर कि इससे पहले कैसे पहुंच रहा था तो मैं इसे भी स्पष्ट करना चाहूंगा कि पूरे वर्ष निरंतर एक ही समय पर किसी भी व्यक्ति को एक जगह पर नही पहुंचाया जा सकता। प्रोबिलिटी कहती है कि कुछ विशेष दिवसों में शिक्षक को देरी हो सकती है। वह देरी बारिश के कारण हो सकती है, वह देरी बाढ़ के कारण हो सकती है, वह देरी प्राकृतिक आपदा के कारण हो सकती है, वह देरी सड़क दुर्घटना के कारण हो सकती है। वह देरी सोमवार को फलों की टोकरी मोटर साइकिल पर लादकर ले जाने में हो सकती है। वह देरी एमडीएम की सब्जी लाने ले जाने में हो सकती है। वह देरी बीएलओ कार्य को करने के कारण हो सकती है।
लेकिन दुर्भाग्य है एसी कमरों में बैठकर खर्रे जारी करने वाले हुक्मरानों को यह भला कहां दिखाई देता है। हुक्मरानों को यह भी दिखाई नही देता कि जो विभाग समय से पदोन्नति और वेतन नहीं दे सकता वह किस तरह शिक्षकों के साथ न्याय का झूठा दिखावा कर सकता है। आंकड़ेवाजी में उलझा विभाग कब मूल शिक्षा से कोसों दूर होता जा रहा है यह बेहद चिंतनीय है। क्या विद्यालयों को हम वह समस्त भौतिक संसाधन दे पाए है जो एक विद्यालय के लिए जरूरी है? उत्तर मिलेगा नही बिल्कुल नहीं।
हम देखेंगे विभाग समाज में एक सोच देना चाहता है कि शिक्षक अपने कर्तव्यों के प्रति सजग नहीं है जबकि क्षेत्र में जाकर देखा जाए तो आंकड़े इसके उलट प्राप्त होते हैं। जबरन दी जाने वाली मई जून की छुट्टियां सिरे से समाप्त होनी चाहिए, उनके स्थान पर 30 दिवस EL की व्यवस्था होना चाहिए। 15 हाफ डे लीव की व्यवस्था होनी चाहिए। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि परिवार या किसी परिचित में शादी विवाह या दुर्घटना हेतु हम मात्र 14 आकस्मिक अवकाश से कैसे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकेंगे यह बेहद चिंतनीय है।
चिंतनीय तो तब हो जाता है जब एक शिक्षक या शिक्षिका अपने स्वयं के विवाह हेतु चिकित्सकीय अवकाश लेती है। मेरी समझ के बाहर है कि विवाह हेतु अवकाश , चिकित्सकीय अवकाश की श्रेणी में आता है? घाल मेल बहुत है लेकिन हुक्मरान अपने जिद्दी रवैए में इस कदर मशगूल है कि उन्होंने प्रदेश के मुखिया तक को दिग्भ्रमित कर रखा है। जरूरी है मजबूती से ऊल जलूल आदेशों का एकजुटता के साथ विरोध किया जाए अन्यथा शोषण की इबारत यूं ही लिखी जाती रहेगी। संगठन के साथ मजबूती से खड़े रहिए। विजय सुनिश्चित है……
सत्यमेव जयते!!
जय शिक्षा , जय शिक्षक।।