राब्यू, जागरण, लखनऊः कम नामांकन वाले परिषदीय विद्यालयों के विलय को लेकर शिक्षकों में विरोध है। शिक्षा विभाग उन्हें मनाने और समझाने में जुटा है। शुक्रवार को सचिवालय में हुई बैठक में शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने स्पष्ट किया कि बिना उनकी राय और समाज की भागीदारी के यह फैसला स्वीकार नहीं होगा। शिक्षा अधिकारियों ने भरोसा दिलाया कि इस प्रक्रिया में जिले स्तर पर शिक्षकों, जन समुदाय की बात सुनी जा रही है।

बैठक की अध्यक्षता अपर मुख्य सचिव बेसिक व माध्यमिक शिक्षा दीपक कुमार ने की। शिक्षक प्रतिनिधियों को बताया गया कि स्कूलों का विलय केवल शैक्षिक गुणवत्ता सुधारने के लिए किया जा रहा है। इससे न तो किसी शिक्षक
शिक्षा विभाग के अधिकारियों संग प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रतिनिधियों की बैठक
की नौकरी जाएगी और न ही कोई स्कूल बंद किया जाएगा। शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से ही अभिभावक इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। यदि विद्यालयों की दूरी बढ़ती है तो बच्चों के स्कूल छोड़ने की आशंका बढ़ेगी, जिससे साक्षरता दर पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। सरप्लस शिक्षक, कक्षा-कक्ष की कमी, रसोइयों और शिक्षामित्रों के समायोजन जैसी समस्याएं भी सामने आएंगी। बैठक में शिक्षकों ने स्थानांतरण, समायोजन में हुई गड़बड़ियों, लंबित पदोन्नतियों, वेतनमान से जुड़ी समस्याओं व गैर मान्यताप्राप्त विद्यालयों के संचालन
जैसे मुद्दों को भी उठाया। संगठन की स्पष्ट मांग थी कि किसी भी निर्णय से पहले जिला और ब्लाक स्तर पर शिक्षकों से राय ली जाए। महानिदेशक स्कूल शिक्षा कंचन वर्मा, बेसिक शिक्षा निदेशक प्रताप सिंह बघेल, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष सुशील कुमार पांडेय सहित अन्य
शिक्षक प्रतिनिधि मौजूद थे। विभाग नहीं बता रहा विलय विद्यालयों की संख्या: बेसिक शिक्षा विभाग
प्रदेश में विलय होने वाले विद्यालयों की पूरी संख्या नहीं बता पा रहा है। किसी जिले में 20 तो किसी जिले में 50 से कम नामांकन वाले विद्यालयों को नजदीक के विद्यालय से जोड़ा जा रहा है। प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष सुशील कुमार पांडेय का दावा है कि करीब 25 हजार विद्यालयों का विलय हो सकता है।